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प्रभावना नहीं कर सकते। विभिन्न सम्प्रदायों के अनुयायियों में ऐक्य और समन्वय बना रहे है, इसके लिए मैंने एक पंचसूत्रीय कार्यक्रम सुझाया है१. मंडनात्मक नीति बरती जाए । अपनी मान्यता का प्रतिपादन किया
जाए। दूसरों पर मौखिक या लिखित आक्षेप न किया जाए। २. दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखी जाए। ३. दूसरे सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों के प्रति घणा और तिरस्कार की
भावना का प्रचार न किया जाए। ४. सम्प्रदाय-परिवर्तन के लिए दबाव न डाला जाए । स्वेच्छा से कोई व्यक्ति
सम्प्रदाय-परिवर्तन करे तो उसके साथ सामाजिक बहिष्कार आदि के रूप में अवांछनीय व्यवहार न किया जाए। ५. जैन धर्म के सर्व-सम्प्रदायमान्य सिद्धान्तों का संगठित रूप में प्रचार किया जाए।
___ सभी सम्प्रदायों के लोग यदि इन सूत्रों को स्वीकार कर चलेंगे तो मेरा ऐसा दृढ़ विश्वास है कि पारस्परिक सौहर्द, सौजन्य तथा मैत्री का एक सुन्दर वातावरण निर्मित होगा। जैन धर्म के व्यापक प्रचार एवं प्रभावना का कार्य तीव्र गति से आगे बढ़ सकेगा।
आगरा २६ मार्च १९५८
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महके अब मानव-मन
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