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जैन दर्शन का व्यापक प्रचार हो
जैन संस्कृति एक व्यापक, उदार और महान् संस्कृति है। यद्यपि इस संस्कृति के आगे 'जैन' विशेषण लगा है, पर वस्तुतः यह किसी वर्गविशेष की नहीं, किसी वर्णविशेष की नहीं, बल्कि सबकी है। सम्पूर्ण मानवजाति का ही नहीं, अपितु समग्र प्राणी-जगत् का अभ्युदय यह चाहती है । महान् अवदान
जैन दर्शन अनेकान्त पर आधारित एक युक्ति-सम्मत विचार-दर्शन है । यह सापेक्ष दृष्टिकोण का आश्रयी है । एक ओर यह एकता का हामी है, तो दूसरी तरफ अनेकता को भी स्वीकार करता है। यह बहुत गहरा तत्व है । पर जितना गहरा है, उतना ही उपादेय भी है। व्यक्ति-व्यक्ति, परिवारपरिवार, समाज-समाज, राष्ट्र-राष्ट्र के बीच जो विवाद खड़े होते हैं, उन्हें इस अनेकान्त के माध्यम से बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता है । यह जैन दर्शन का विश्व को एक महान् अवदान है। इस अवदान का अभी तक सही-सही मूल्यांकन नहीं हुआ है, पर जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन निश्चय ही सारा संसार भगवान महावीर के प्रति अत्यंत भक्ति भाव से श्रद्धाप्रणत होगा।
जैन दर्शन में अहिंसा पर बहुत सूक्ष्मता और व्यावहारिक दृष्टिकोण से चिंतन किया गया है। उसके आधार पर संसार की विभिन्न समस्याओं का समुचित समाधान खोजा जा सकता है, विश्व-मैत्री की भावना को साकार किया जा सकता है। जैन एकता के पांच सूत्रः
जैन दर्शन के सन्दर्भ में लोगों को प्रामाणिक और विस्तृत जानकारी बहुत कम है। इस स्थिति के बनने के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं, पर मूलभूत कारण जैनों का अपना प्रमाद है । उन्होंने इस क्षेत्र में सलक्ष्य ध्यान ही नहीं दिया। ध्यान देने की बात भी आगे की है, वे अभी तक एकता के सूत्र में भी नहीं बन्धे । विभिन्न सम्प्रदायों के लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर संघर्ष करते हैं। इस स्थिति से उन्हें उबरना होगा। अन्यथा वे जैन शासन की
जैन दर्शन का व्यापक प्रचार हो
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