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लेनेवाला यदि गरीबों का शोषण करता है, घर-परिवार में छोटी-छोटी बात पर कलह करता है, आक्रोश करता है तो उसे धार्मिक समझा जाए ? समझा जाए तो क्यों ? वस्तुतः सच्चा धार्मिक वही है, जिसका व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यावसायिक, राजनैतिक, सार्वजविक सभी प्रकार का जीवन अहिंसा, सत्य, समता, करुणा, क्षमा, मैत्री, सहिष्णुता, प्रामाणिकता, नैतिकता जैसे तत्त्वों से अनुप्राणित हो। मेरी दृष्टि में उपासना दो नंबर की बात है। धार्मिक बनने के लिए प्राथमिक अपेक्षा है-व्यक्ति आचरण और व्यवहार को सम्यक् बनाए, पवित्र बनाए, शुद्ध बनाए । यदि वह इस प्राथमिक अपेक्षा को पूरा कर लेता है और उपासना में कम भी रस लेता है या बिल्कुल भी रस नहीं लेता है तो भी उसकी धार्मिकता को कोई आंच नहीं आएगी। इसलिए अपेक्षा है कि व्यक्ति आचरण और व्यवहार के स्तर पर धार्मिक बने । अणुव्रत राष्ट्र में यही कार्य रहा है। आप भी अणुव्रती बनकर सच्चे धार्मिक बन सकते हैं।
आगरा २२ मार्च १९५८
धर्म और धार्मिक
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