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मान लेता है । एक व्यक्ति चोरी अवश्य करता है, पर उसे बुरा मानता है तो देर-सवेर उसके उस दुष्प्रवृत्ति से छूटने की संभावना बनी रहती है। आज वह मजबूरीवश चोरी करता है। पर जब कल उसके सामने मजबूरी नहीं होगी तो बहुत संभव है कि वह चोरी करना छोड़ देगा। इसके विपरीत जो व्यक्ति घोरी करना अच्छा मानता है, उसकी चोरी छूटनी असंभवप्रायः है, भले उसके सामने मजबूरी की स्थिति न हो। भगवान महावीर ने मिथ्या दष्टिकोण को सबसे बड़ा पाप माना है। इसलिए मैं आपसे कहना चाहंगा कि आप सबसे पहले अपनी श्रद्धाहीनता को मिटाएं, असम्यक् श्रद्धा को हटा कर सम्यक् श्रद्धा का निर्माण करें। श्रद्धा जब सम्यक् बनेगी तो आचरण के सम्यक बनने का मार्ग स्वतः प्रशस्त बन जाएगा।
भरतपुर १९ मार्च १९५८
सम्यक् आस्था का निर्माण हो
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