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ऊंचा जीवन
आत्म-नियंत्रण ही सच्चा सुख है
' मैं उस व्यक्ति के जीवन को ऊंचा जीवन नहीं मानता, जिसके खान-पान का स्तर ऊंचा है, रहन-सहन ऊंचा है, जीवन-यापन की बहुविध सुविधाएं उपलब्ध हैं। मेरी दृष्टि में ऊंचा जीवन वह है, जो संयम से संवलित है। जहां संयम नहीं, आत्म-नियन्त्रण नहीं, वहां मैं मृत्यु देखता हूं। वहां केवल मनुष्य का शारीरिक आकार है, आत्मा तो वहां मूच्छित और म्रियमाण ही है। यहां यह समझ लेना आवश्यक है कि संयम या आत्मनियन्त्रण कोई पर-सापेक्ष तत्त्व नहीं है । यह तो नितांत आत्म-सापेक्ष ही है। संयत और आत्म-नियंता जिस आंतरिक तुष्टि का अनुभव करता है, वह असंयत को कब सुलभ हो सकती है ? इससे आप संयम या आत्म-नियन्त्रण का मूल्य और माहात्म्य अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अपेक्षा है, आप लोग भी अपने जीवन को अधिकाधिक संयत बनाएं, आत्म-नियन्त्रण को साधे । आपका मन, आपकी वाणी, आपकी शारीरिक क्रियाएं, आपकी वृत्ति, आपकी विभिन्न गतिविधियां सब संयम के अधिक-से-अधिक निकट रहें । यदि ऐसा होता है तो आप अपने जीवन में अनिर्वचनीय सुख और आनन्द की अनुभूति कर सकेंगे। हीन और जघन्य वृत्ति
मैं पूछना चाहता हूं, संसार में क्या कोई ऐसा व्यक्ति भी है, जो सुख और शांति की चाह नहीं रखता ? मैंने तो ऐसा कोई व्यक्ति आज तक नहीं देखा। यदि आपमें से किसी के कोई ऐसा व्यक्ति ध्यान में हो तो वह उसको मुझसे मिलाए । पर मैं जानता हूं, आपमें से कोई भी इस प्रकार के कोई व्यक्ति से भेंट नहीं करा सकता । संसार में ऐसा कोई व्यक्ति है ही नहीं, जिसके मन में दुःख की आकांक्षा हो, जो सुख न चाहता हो । और इससे भी आगे वास्तविकता तो यह है कि व्यक्ति की सुख-प्राप्ति की आकांक्षा इतनी तीव्र है कि वह येन-केन-प्रकारेण उसे उपलब्ध होना चाहता है। भले किसी को लूटना पड़े, उत्पीड़न देना पड़े, उसके कोई प्रकंपन नहीं होता। उसके
महके अब मानव-मन
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