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नारी परिवार और समाज की निर्मात्री है
नारी हीन वृत्ति को त्यागे
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महिला और पुरुष समाज के दो बराबर के वर्ग हैं । समाज - विकास के लिए महिला वर्ग का विकास उतना ही आवश्यक है, जितना कि पुरुष वर्ग का । मैं नहीं समझता, नारी अपने को अबला और कमजोर क्यों मानती है ? क्यों ऐसा सोचती है कि पुरुष ने उसके विकास को अवरुद्ध कर रखा है ? मेरी दृष्टि में यह उसकी अपनी हीन भावना का द्योतक है। भगवान महावीर ने हीन वृत्ति को उतना ही अहितकारी माना है, जितना कि अहं वृत्ति को । महिलाएं यदि वस्तुतः ही विकास करना चाहती हैं, अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहती हैं तो उन्हें इस हीन वृत्ति से अपना दामन छुड़ाना होगा । कैसा समानाधिकार ?
कभी-कभी नारी की ओर से समानाधिकार का स्वर सुनाई देता है । मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि कैसा समानाधिकार ? क्या करेगी वह समानाधिकार प्राप्त करके ? उसके अपने अधिकार ही बहुत हैं । वह परिवार, समाज और राष्ट्र की निर्मात्री है । क्या यह कोई कम अधिकार है ? यदि वह अपने इस एक अधिकार के प्रति भी गंभीर बन जाए और उसका सम्यक् उपयोग करना सीख जाए तो समाज में एक गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है । इसलिए मैं महिला वर्ग से कहना चाहता हूं कि वह समानाधिकार की नहीं, स्वाधिकार की बात करे ।
नारी शक्ति का विस्फोट हो
आज समाज और राष्ट्र की जो स्थिति है, वह महिलाओं से अज्ञात नहीं है । मानवता मूच्छितप्रायः बन रही है । समाज के छोटे-बड़े सभी वर्ग बुराइयों से ग्रस्त बन रहे हैं। चारों ओर अशांति व्याप्त है । इस स्थिति में मैं महिलावर्ग को आह्वान करना चाहता हूं कि वह आगे आए और मानवता को नवजीवन देने के लिए अपनी नारी शक्ति का विस्फोट करे । अनैतिकता और भ्रष्टाचार के अन्धकार को मिटाने के लिए नैतिकता का दीप जलाए ।
महके अब मानव-मन
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