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________________ भोग-उपभोग के साधन सामग्री जुटाने तक है । जरूरी है आस्था में बदलाव मैं बहुधा व्यापारियों के मुंह से इस आशय की शब्दावली सुनता हूं कि प्रामाणिकता, ईमानदारी, सत्य से व्यापार चलना संभव नहीं है। मैं इस अवधारणा से सहमत नहीं हूं। मैं तो मानता हूं, यह बिलकुल संभव है। इससे भी आगे मैं तो यह भी कहना चाहता हूं कि इसे संभव बनाना उपयोगी और आवश्यक भी है । जीवन में प्रामाणिकता, नैतिकता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा आनी ही चाहिए। हां, इस कारण इतना तो संभव है कि प्रारंभ में व्यक्ति को कुछ कठिनाई उठानी पड़े, कुछ कष्ट झेलना पड़े। परन्तु अन्तिम परिणाम अश्रेयस्कर नहीं हो सकता, यह असदिग्ध है। जैसे-जैसे यह सचाई प्रकट होगी कि अमुक व्यक्ति या व्यापारी अप्रामाणिकता नहीं बरतता, भ्रष्टाचार और अनैतिकता नहीं करता, उसका सर्वत्र विश्वास जम जाता है । फलतः उसको व्यापार में औरों की अपेक्षा अधिक सफलता मिलती है। मेरे सामने कई व्यापारियों के उदाहरण है, जिन्होंने व्यापार में नैतिकता, प्रामाणिकता, सत्यनिष्ठा की टेक नहीं छोड़ी और अच्छी सफलता अजित की। इसलिए मैं व्यापारियों से कहना चाहता हूं कि वे 'सचाई से काम नहीं चल सकता' अपने इस स्वर को बदलें। यह स्वर आत्म-साहस और आत्मविश्वास की कमी का द्योतक है । जरूरी है व्यवहार में बदलाव मैं अनुभव कर रहा हूं कि आज बाजार असुरक्षित समझे जाने लगे हैं। ग्राहक बाजार में इस बात के लिए पग-पग पर आशंकित रहता है कि जाने कब मैं ठगा जाऊं । क्या व्यापारियों के लिए यह लज्जा की बात नहीं है ? गम्भीर चिंतन की बात नहीं है ? हालांकि मैं मानता हूं कि सब व्यापारी ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी नहीं करते। पर बहुलांश में जब ऐसा होता है तो पूरा व्यापारी समाज बदनाम होता है, उसके प्रति ग्राहकों के मन में अविश्वास का भाव पैदा होता है । व्यापारियों को मैं आह्वान करता हूं कि वे अपनी इस तस्वीर को बदलने के लिए कृतसंकल्प हों। अणुव्रत आंदोलन समाज के अन्यान्य वर्गों की तरह व्यापारी वर्ग को भी नैतिक, प्रामाणिक एवं ईमानदार देखना चाहता है। आप अणुव्रत आन्दोलन के दर्शन को समझे और उसकी आचार-सहिता को स्वीकार कर आत्मसाक्षी से पालन करें। निश्चित ही आपके जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन घटित हो सकेगा। जयपुर ९ मार्च १९५८ व्यापारी आत्मालोचन करें २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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