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________________ सम्प्रदाय और आंख ___ कई बार कहीं-कहीं से यह स्वर सुनाई पड़ता है-जब आप अणुव्रत आंदोलन का व्यापक कार्य कर रहे हैं, फिर सम्प्रदायविशेष के दायरे में क्यों हैं ? आप उससे बाहर क्यों नहीं आ जाते ? मैं उनसे कहना चाहता हूं कि अपरिग्रह, अस्तेय, सत्य और अहिंसा की बुनियाद पर खड़ा सम्प्रदाय संकीर्ण दायरा नहीं हो सकता । यदि धार्मिक संगठन को अपेक्षा से उसे दायरा माना भी जाए तो वह ऐसा दायरा है, जो प्रतिबंधन नहीं, उन्मोचन देता है। कुंठा नहीं, गति-प्रगति देता है। कोरी आंखों से आकाश को देखने पर बहुत कम नक्षत्र देखे जा सकते हैं। किन्तु इसके स्थान पर यदि दूरबीन लगाकर देखा जाए तो आकाश में सौरमंडल और अधिकाधिक नक्षत्र बहुत आसानी तथा अत्यंत स्पष्टता से देखे जा सकते हैं। अब समझने की बात यह है कि आंखें यहां दूरबीन के दायरे में आती हैं । पर यह दुपहर के प्रकाश की तरह स्पष्ट है कि वह दायरा उनकी दर्शन-शक्ति को बढ़ाता ही है, घटाता नहीं । यही बात अपरिग्रह, सत्य, अहिंसा जैसे तत्त्वों पर आधारित धर्म-संप्रदाय के लिए भी है। आप लोगों में से भी यदि किसी के मन में इस प्रकार की कोई अवधारणा हो तो वह अपनी अवधारणा को परिमार्जित कर ले। जयपुर ५ मार्च १९५८ अणुव्रत आन्दोलन : आध्यात्मिक आन्दोलन २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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