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अणुव्रत आन्दोलन : आध्यात्मिक आन्दोलन
मेरा दिमाग बिलकुल खुला है
अणुव्रत-आन्दोलन अहिंसा के आधार पर चल रही एक आध्यात्मिक आयोजना है । इसे लेकर मैंने, मेरे साधु वर्ग ने, साध्वी वर्ग ने कार्य किया और कर रहे हैं। लोगों ने इसे समझा, इसको प्रसिद्धि भी मिली, देश के बौद्धिक वर्ग ने इसे खूब बढ़ावा भी दिया। यह स्थिति देखकर मेरे मन में कई बार विचार उठता है, कहीं यह कम पसीने की कमाई तो नहीं है? कहीं अतिरंजन ख्याति तो नहीं है ? और इसके साथ ही मैं अन्तर्-अवलोकन में खो जाता हूं, सूक्ष्म आत्मालोचन करता हूं। इन क्षणों में मुझे प्रतिभासित होता है, अन्तर् आत्मा से आश्वस्ति का स्वर सुनाई पड़ता है-नहीं, यह कम पसीने की कमाई नहीं है, अतिरंजन ख्याति नहीं है। काम हुआ है, हो रहा है। देश में वैचारिक जागति पनपी है, पनप रही है। उसी के कारण इसके प्रति लोग आशाभरी नजरों से निहार रहे हैं । फिर जब-कभी मैं समालोचना सुनता हूं तो मुझे क्षोभ नहीं, बल्कि संतोष होता है कि चलो चिंतन का एक अवसर मिला । मैं पुनः सोचूं । और मैं सोचता भी हूं। मेरा दिमाग बिलकुल खुला है और चाहता हूं, सदा खुला ही रहे ।
करनी के स्तर पर आदर्श उपस्थित करें
__बंधुओ ! अणुव्रत आन्दोलन व्यापक है । सभी लोगों के सुझावों को यहां स्थान है । और होना भी चाहिए, क्योंकि इसके केन्द्र में अहिंसा है। सहिष्णुता और सह-अस्तित्व अहिंसा के दो मुख्य पहलू हैं। मैं चाहूंगा, देश के विचारक एवं प्रबुद्धजन इस अहिंसामूलक आंदोलन पर अपना ध्यान केन्द्रित करें, गंभीर चिंतन करें और चिंतन करने पर उन्हें यदि ऐसा लगे कि यह कार्यक्रम उनके लिए उपयोगी है तो वे इसकी आचारसंहिता को स्वीकार करें। इससे वे स्वयं तो लाभान्वित होंगे-ही-होंगे, औरों के लिए भी प्रेरणा बन सकेंगे। आदर्श उपस्थित कर सकेंगे। न केवल कथनी के स्तर पर, बल्कि करनी के स्तर पर ।
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महके अब मानव-मन
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