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जैन दर्शन
जैन दर्शन का वैशिष्ट्य
जैन दर्शन संसार का एक महान और प्रमुख दर्शन है। अहिंसा, अपरिग्रह आदि धर्म के मौलित तत्त्वों के बारे में जैसी सूक्ष्मता एवं गहराई से इस दर्शन में विचार हुआ है, वैसा अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। इस दर्शन का सबसे बड़ा वैशिष्ट्य यह है कि यह एक आत्मकर्तृत्ववादी दर्शन है। यह कहता है कि सुख-दु:ख की कर्ता आत्मा है। कोई भी दूसरा अन्य व्यक्ति इसके लिए जिम्मेवार नहीं है । और तो क्या, भगवान का भी इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता। व्यक्ति सत्-असत् जैसी प्रवृत्ति करता है, उसी के अनुरूप वह सुख-दुःख को प्राप्त करता है। इसी प्रकार यह कहता है कि सुख-शान्ति का अक्षय कोष अपनी आत्मा ही है। जैसे-जैसे हमारी आत्मा विशुद्ध बनती जाती है, वैसे-वैसे वह अक्षय कोष प्रकट होने लगता है। भौतिक पदार्थों या भोग-विलास में सुख-शान्ति को खोजना मात्र मृगमरीचिका है । वहां सुख कहां, मात्र सुखाभास है, जो कि व्यक्ति को भ्रान्त बनाये रखता है। जैन दर्शन के अनुसार भयंकर-से-भयंकर किसी युद्ध को जीतना जितना दुष्कर नहीं, उतना दुष्कर एक अपनी आत्मा का जीतना है। इसलिए वह आत्म-विजय को परम विजय मानता है। ये सारी बातें व्यक्ति को आत्मोन्मुख बनने के लिए प्रेरित करती हैं। अनेकान्त का मूल्य
अनेकांतवाद के रूप में जैन दर्शन ने विश्व को एक ऐसा सिद्धांत दिया है, जो व्यक्ति को अनन्त सत्य की यात्रा पर प्रस्थित करता है। इस सिद्धांत को स्वीकार कर व्यक्ति विरोधी-से-विरोधी विचारों में भी सामंजस्य का सूत्र खोज सकता है। व्यक्ति से लेकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक के जितने भी विवाद हम देखते हैं, उनका सुन्दर समाधान इस सिद्धांत के माध्यम से बड़ी सहजता से निकाला जा सकता है। संकीर्ण सांप्रदायिकता को दूर हटाएं
जैन दर्शन की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि इसके सिद्धांत अत्यंत
- महके अब मानव-मन
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