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० व्यक्ति अपने कर्म से ही महान् और हीन होता है। (१६८) ० सम्यक् श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति ही सम्यक् ज्ञान को प्राप्त कर सकता
है। (१७०) ० सम्यक् ज्ञान ही वह तत्व है, जो व्यक्ति को अभ्युदय की ओर ले जाता
है। (१७०) ० सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान के सहारे पनपनेवाला चरित्र ही
स्वस्थ जीवन का प्रतीक है (१७०) ० श्रद्धा आत्म-विकास का पुष्ट आधार है । (१७१) ० विद्यार्थी-वर्ग राष्ट्र की सबसे मूल्यवान् संपत्ति है । (१७२) ० 'व्रत' सुखमय जीवन को बुनियाद है । (१७३) ० 'क्त' का अर्थ है-असद् से विरति, असंयम से संयम की ओर
प्रस्थान। (१७२) • मेरी दृष्टि में सबसे प्राथमिक और आवश्यक निर्माण कार्य मनुष्य का निर्माण करना है, मानवता का निर्माण करना है। (१७८)
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महके अब मानव-मम
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