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० जैनत्व की कसौटी नाम के पीछे 'जन' जोड़ना नहीं, बल्कि महावीर
के आदर्शों के सांचे में अपनी सोच, व्यवहार एवं कर्म को ढालना
है। (१४७) ० धर्म से केवल परलोक ही नहीं, वर्तमान भी सुधरता है । (१५२) ० जो धर्म वर्तमान को नहीं सुधारता, वह भविष्य को कदापि नहीं
सुधार सकता । (१५२) ० धर्म तो झगड़े को मिटाने का काम करता है, फिर उसको लेकर
झगड़ा कैसा ? मुझे लगता है, झगड़ा धर्म का नहीं, अपने-अपने
ऐकांतिक आग्रह का है। (१५१) ० सत्य अनन्त है, उसको देखने के पहलू भी अनन्त हैं। (१५२) ० जीवन की पवित्रता एवं स्वस्थता का आधार वही धर्म बन सकता है,
जो व्यक्ति के दैनंदिन जीवन से जुड़े, जीवन के हर व्यवहार एवं
आचरण से जुड़े । (१५१) ० धन से धर्म का कोई संबंध ही नहीं है । दूर का भी कोई संबंध नहीं
है। (१५४) ० वही समन्वय वास्तविक समन्वय है, जिसमें अपने मौलिक गुणों की सुरक्षा के साथ ऊपरी बातों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है।
(१५६) ० विद्या-प्राप्ति का वास्तविक प्रयोजन जीवन का सर्वतोमुखी विकास
० संसार में जितनी भी बड़ी-बड़ी क्रांतियां या परिवर्तन घटित हुए हैं,
उनमें साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। (१५९) ० व्रत में वह अद्भुत शक्ति है, जो व्यक्ति में आंतरिक रूपांतरण घटित
कर सकती है। (१६०) ० जब तक अध्यात्म, त्याग एवं संयममूलक संस्कृति के प्रति निष्ठा
भारतीय लोगों में बनी हुई है, तब तक साधु-संतों का अभिनन्दनस्वागत होता रहेगा । (१६४) • अध्यात्म और त्याग-संयममूलक संस्कृति ही भारतवर्ष का प्राणतत्व
० जीवन-जागरण के लिए ज्ञान और आचार का समन्वय नितांत
अपेक्षित है। (१६६) ० अनेकांत दृष्टि सत्य से साक्षात्कार करने का सफलतम अभिक्रम है।
(१६७) प्रेरक वचन
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