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• स्वार्थ का अतिरेक अविश्वास को उत्पन्न करता है । ( ९९ )
• आदर्श तक हर कोई नहीं पहुंच सकता, पर उस दिशा में एक-एक चरण आगे तो बढ़ ही सकता है । ( १०१)
• जैसे समाज के बदलाव / सुधार के लिए व्यक्ति का बदलाव / सुधार महत्वपूर्ण है, उसी तरह व्यक्ति के बदलाव / सुधार के लिए समाज का बदलाव / सुधार भी महत्वपूर्ण है । ( १०३ )
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समाज का वातावरण जब स्वस्थ होता है तो व्यक्ति के लिए भी अपने-आपमें परिवर्तन करना और पथ का अनुशरण करना सुगम हो जाता है । (१०३)
• दण्ड और बल-प्रयोग संदेह, अलगाव और आक्रोशभरी प्रतिक्रिया पैदा करते हैं । (१०३,१०४)
• भारतवर्ष की अपनी एक गौरवशाली संस्कृति है, एक महान परंपरा है। यहां प्रत्येक शुभ दिन, मंगल प्रसंग को जीवन-शुद्धि और आत्मजागृति की प्रेरणा के साथ जोड़कर मनाया जाता है । ( १०५)
• आत्मावलोकन व्यक्ति के जीवन में नव चेतना का संचार करता है । अतीत की भूलों को सुधारने का अवसर देता है । (१०५ )
• राष्ट्र का सच्चा विकास तो राष्ट्र के नागरिकों के जीवन में चरित्र, नैतिकता, सदाचार, सचाई और ईमानदारी के फलने-फूलने में है । (१०६)
• जब तक चरित्र, नैतिकता, सचाई आदि जीवननिर्माणकारी तत्वों के क्षेत्र में विकास नहीं होगा, तब तक राष्ट्र की कोई भी अच्छी-सेअच्छी योजना, महत्वाकांक्षी - से- महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी सफल नहीं हो सकता । ( १०६)
• कारण को मिटाने से कार्य स्वयं समाप्त हो जाता है । ( १०६)
० विद्यार्थी इस तथ्य को क्यों भूल जाते हैं कि उनका जीवन योगी का जीवन है, साधना का जीवन है ।
• लोग धरती पर स्वर्ग के अवतरण की कल्पना करते हैं । पर मैं नहीं समझता, उसकी क्या जरूरत है ? यह धरती ही स्वर्ग बन सकती है, बशर्ते सच्चरित्र के प्रति मानव-मानव गंभीर बन जाए । ( ११०,१११ ) • प्रमाद एक अपेक्षा से संसार में सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि इसमें डूबकर ही व्यक्ति दुष्प्रवृत्त बनता है, नानाविध पापकर्म करता है । (११२) • चिन्तित और उद्वेलित होना समस्या का समाधान नहीं है । ( ११५ ) प्रेरक वचन
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