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धांधली और अव्यवस्था को कोई स्थान नहीं मिलता । जीवन - विकास की प्रक्रिया
जीवन - विकास के लिए दर्शन, ज्ञान और चारित्र के सम्यक् योग को आवश्यक माना गया हैं । दर्शन का तत्पर्य श्रद्धा है । सबसे पहले व्यक्ति की श्रद्धा सम्यक् होनी चाहिए । सम्यक् श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति ही सम्यक् ज्ञान को प्राप्त कर सकता है । ध्यान रहे, सम्यक् ज्ञान ही वह तत्व है, जो व्यक्ति को अभ्युदय की ओर ले जाता है । सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान के सहारे पनपने वाला चरित्र ही स्वस्थ जीवन का प्रतीक है। विद्यार्थीजन इन तीनों तत्वों को अपनाकर अपने जीवन-विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे, ऐसी आशा करता हूं । उनका यह जीवन-विकास समाज - विकास में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से निर्णायक भूमिका निभाएगा ।
निर्माण की बेला
विद्यार्थी जीवन निर्माण की बेला है । प्रत्येक विद्यार्थी को चाहिए कि वह इस स्वर्णिम अवसर का अधिक-से-अधिक सदुपयोग करता हुआ विकास के मार्ग पर अग्रसर हो । अणुव्रत आंदोलन के अन्तर्गत विद्यार्थी वर्ग के लिए कुछ नियम हैं । उन नियमों को स्वीकार कर आत्मसाक्षी से पालन करना विद्यार्थियों की इस यात्रा में पाथेय का काम करेगा। क्या विद्यार्थी इस पाथेय को प्राप्त नहीं करेंगे ? अवश्य करेंगे, ऐसा विश्वास करता हूं ।
काशी विद्यापीठ, काशी २१ दिसम्बर १९५८
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महके अब मानव-मन
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