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शोषण को प्रश्रय देना भंयकर विडम्बना है। स्पष्ट शब्दों में अपने-आपको धोखा देना है। धर्मस्थान में तन्मयता से पूजा और उपासना करने वाला व्यक्ति जब घर, दुकान और ऑफिस में अनैतिक, भ्रष्ट और कूर व्यवहार करता देखा जाता है तो सहसा मन में प्रश्न जागता है, क्या धर्म ने उसकी आत्मा को छुआ भी है ?
अणुव्रत आंदोलन वैदिक, जैन, बौद्ध आदि सभी धार्मिक परम्पराओं के आचार-शुद्धिमूलक आदर्शों से संगत अभियान है। विभिन्न उपासनाओं में विश्वास रखने वाले धार्मिक लोगों को सदाचार के माध्यम से एक मंच पर लाने का उपक्रम है। मैं चाहता हूं, काशी नगरी के विद्वान् एवं सामान्य नागरिक इस आंदोलन के दर्शन को गहराई से समझे और इसके छोटे-छोटे व्रतों को स्वीकार कर इस अभियान में सक्रिय रूप में सहयोगी बनें । भारतीय संस्कृति का स्वागत
___मैं बहुत दिनों से सोचता था कि काशी जाऊं। काशी जहां वैदिक एवं बौद्ध संस्कृति की पुण्य-स्थली है, वही जैन परंपरा को तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की जन्म-स्थली भी है। ज्ञानाराधना एवं साहित्य-साधना का यह एक भारत-प्रसिद्ध केन्द्र रहा है। ऐसे नगर में आकर मुझे सात्विक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
आप लोगों ने मेरा स्वागत किया। मेरे प्रति आदर और सद्भावना व्यक्त की। पर मैं ऐसा समझता हूं कि यह स्वागत, अभिनंदन और आदर वस्तुतः मेरा नहीं, अपितु अध्यात्म का है, त्याग-संयममूलक भारतीय संस्कृति का है । मैं तो मात्र निमित्त हूं। मेरे स्वागत के निमित्त अध्यात्म और भारतीय संस्कृति के प्रति आपकी आस्था को अभिव्यक्ति मिली है। जब तक अध्यात्म, त्याग एवं संयममूलक संस्कृति के प्रति यह निष्ठा भारतीय लोगों में बनी हई है, तब तक साधु-संतों का अभिनन्दन-स्वागत होता रहेगा। उनको आदरसत्कार मिलता रहेगा। ध्यान रहे, अध्यात्म और त्याग-संयममूलक यह संस्कृति ही भारतवर्ष का प्राणतत्व है। इस प्राणतत्व को सुरक्षित रखकर ही भारतवर्ष अपने गौरव को सुरक्षित रख सकता है।
काशी १८ दिसम्बर १९५८
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महके अब मानव-मन
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