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________________ पाप से बचने का उपाय दशवकालिक जैन आगमों में एक महत्वपूर्ण आगम है। उसका एक प्रसंग मैं आपको बताऊं। गणधर गोतम भगवान महावीर से प्रश्न की भाषा में कहते हैं ---- कहं चरे ? कहं चिट्ठे ? कहमासे ? कहं सए ? कहं भुजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ? भगवन् ! मैं कैसे चलूं ? कैसे स्थित रहूं, कैसे बैलूं, कैसे सोऊं, कैसे खाऊं, कैसे बोलू कि जिससे मेरे पापकर्म का बंधन न हो ? इसके समाधान में भगवान महावीर कहते हैं .--. जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ।। गौतम ! तुम यतनापूर्वक चलो, यतनापूर्वक स्थित रहो, यतनापूर्वक बैठो, यतनापूर्वक सोओ, यतनापूर्वक बोलो और यतनापूर्वक खाओ। ऐसा करने से तुम्हारे पापकर्म का बंधन नहीं होगा। __एक वाक्य में कहा जाए तो भगवान महावीर का उत्तर था-'ये सब क्रियाएं संयमपूर्वक करो।' संयम आहती संस्कृति या जैन परम्परा का मूल है। बौद्ध परम्परा में भी इसको महत्व दिया गया है। इसी प्रकार वैदिक परम्परा में भी संयममय जीवन को श्रेष्ठ और आदर्श माना गया है। पर आज का मानव संयम की बात को भूलता जा रहा है । उसकी ही यह दुष्परिणति है कि उसका जीवन दुःख और अशांति का पिंड बन रहा है । अणुव्रत आंदोलन इस स्थिति से मानव को उबारने का एक रचनात्मक प्रयत्न है । छोटे-छोटे व्रतों-संकल्पों के माध्यम से वह व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन में संयम को प्रतिष्ठित करना चाहता है । इस प्रतिष्ठा से समाज नैतिक एवं चारित्रिक दृष्टि से संपन्न बनेगा, जिसकी कि आज नितांत अपेक्षा है। मैं आशा करता हूं, आप इसकी आचार संहिता को स्वीकार कर संयममय जीवन जीने की दिशा में एक नया अभियान शुरू करेंगे । सारनाथ १७ दिसम्बर १९५८ १६२ महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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