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को बहिर्मुखता से अन्तर्मुखता की ओर मोड़ना चाहता है । एक कवि के शब्दों में वह चाहता है
'मानव आशा का दास न बने, आशा उसकी दासी बने । '
कार्यकर्ताओं का दायित्व
संयम के अभाव में भ्रष्टाचार, रिश्वत, शोषण, मिलावट जैसी ढ़ेरसारी दुष्प्रवृत्तियां जन-जीवन में व्याप्त हो रही हैं । ऐसा प्रतिभासित हो रहा है कि मानवता सिसक-सिसक कर रो रही है । ऐसे समय में अणुव्रती कार्यकर्ताओं पर एक विशेष दायित्व है । स्वयं तो संयमोन्मुख रहें ही, दूसरे दूसरे लोगों की जीवन-धारा को भी इस दिशा में मोड़ने का प्रयत्न करें । हृदयपरिवर्तन के धरातल पर सभी प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से दूर करने का प्रयास करें, प्रेरणा दें। मैं इस बात को मानता हूं कि यह कार्य सहज-सुगम नहीं है, श्रम - साध्य है । पर इसके साथ- साथ ही यह भी मानता हूं कि कठिन श्रम के द्वारा होने वाला कार्य स्थायी और फलदायी होता है । इसलिए कार्यकर्ताओं से कहना चाहता हूं कि वे हर स्थिति में यह कार्य करें। इससे उन्हें स्वयं के जीवन की सार्थकता तो प्राप्त होगी ही, समाज और राष्ट्र की भी वे बहुत उल्लेखनीय सेवा कर सकेंगे ।
कानपुर
३ अगस्त १९५८
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महके अब मानव-मन
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