SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (९७) भागमपाठप्ते सिद्ध कर दिखलाइए तब सच्चे का बोलबाला और झूठेका मुंह काला होजाय. समालोचक --देखिए ! सप्तनाङ्ग श्री उशालकदशाङ्ग कामदेवश्रावकके अधिकार में लिखा है कि 'तएणं समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गन्ये निग्गन्धिओ य आमंतेत्ता एवं वयासी-" जइ ताव अज्जो ! समणोवासगा गिहिणो गिदमझे वसंता दिव्यमाणुस्सतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहति जाव अहियासंति । सका पुणाइ अज्जो समणहिं निग्गन्थेहिं दुवालसंगं गणिपिडगं अहिज्जमाहिं दिव्वमाणुस्सतिरिक्खजोणिए उसग्गे सम्मं सहित्तए जाव अहियासित्तए" भावार्थ-उस समय श्रीमहावीरमभु बहुत साधु साध्वीओं को बुलाकर फरनाते हुए कि-हे साधु लोगों ! गृहस्थ श्रावकलोग घरमें वसते हुएभी देव-मनुष्य और तिर्यंचसंबन्धि उपसर्गों को सहन करते हैं तो फिर द्वादशाङ्गकी वाणीको धारणकरनेवाले मुनियों को तो अवश्य इनसे विशेष परिषह सहन करने चाहिये। क्योंकि; मुनि श्रुतज्ञानके धारक होते हैं । देखिए अगर श्रावकोंको अङ्गाउपाङ्गके पढ़नेका अधिकार होता तो पूर्वोक्तपाठमें ऐसा नहीं कहा जाता कि श्रावक इतने उपसर्ग सहन करते हैं तो द्वादशाङ्गीके धारणकरनेवाले तुमको विशेषकरके सहनकरना चाहिये । बस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy