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________________ (९६). समालोचक--क्यों नहीं बराबर बन सकता है । देखिये। जसकी जेबमें चाकू है ऐसे एक आदमीको उसके किसी शत्रुने स्सीसे बांध दिया और कहीं एक ख़ुल्ले स्थानमें रख दिया । किसी दन दुश्मनकी नज़रको बचाकर उस बद्ध आदमीने शनैः २ अपनी जेबमेंसे चाकू निकालकर रस्सीको काटडाली और बन्धनसे मुक्त हो गया । अब किसी दिन उसी चाकूको उस बेसमझ आदमीने अपने लड़केके आग्रहसे उसको खेलने के लिये देदिया । दैवयोगसे लड़का चाकू खुल्ला रखकरके खेलने लगा इतनेमें वह चाकू उसके हाथ से गिर गया और उसका दस्ता एक छोटे खड्डेमें फस गया और धारका भाग बाहरकी तरफ रहा, इतनेमें उस लड़केको ठोकर लगी और उस चाकू पर पेटके बल गिर गया ! वह तीक्ष्ण चाकू तुरतु उस लड़केके पेटमें घुस जानेसे लड़केका प्राण निकल गया। अधिकार वगैर चाकूसे स्वतन्त्र खेलनेके कारण लड़केने अपना नाश किया । जैसे. एकही चाकूने पिताको लाभ और पुत्रको हानी पहुंचाई, उसी तरह एकही सूत्र पढनेकी योग्यतावाले पितारूप साधुओंको लाभ और योग्यताहीन लड़केस्वरूप गृहस्थोंको नुकसान पहुंचाता है ।हां, अगर गृहस्थ गुरुमुखसे सुने तो लाभ हो सकता है। इससे यह बखूबी साबित हो नका कि--एकही वस्तु अधिकारवालेको लाभदायक अनधिकारी मनुष्यको हानिकारक हो जाती है। . तटस्थ-वाह साहब वाह ! युक्ति प्रयुक्तिसे तो आपने सिद्ध कर दिया कि--श्रावकको सूत्रपढ़ेनका अधिकार नहीं है। परन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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