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________________ (८८) छोड़ देंगे ? कदापि नहीं जिसको पिछले घोर पार कम दबाया होगा वही नास्तिकशिरोमणि अनन्तकालतक संसारमें रुलाने वाली तुम्हारी असत्यबातों को सत्य मानेगा । और नहीं | क्योंकि आस्तिकलोगोको तो पंचाङ्गी तथा उसके अनुकूल प्रभावक चायक बनाए हुए सभी ग्रन्थ सूत्रके मूलस्तु ही मान्य हैं । तटस्थ मान्यवर महाशय ! मैं आपकी बातों को अक्षरश: सत्य मानता हूं परुतु कृपया यह बतलावे कि पैतालीस आगमोंमें से किसी भी आगममें वस्त्र आभूषणादि चढ़ाना लिखा है या नही ? उसमें से भी प्रथम ग्यारह अंगमेसे हवाला देना चाहिये । समालोचक – क्यों नहीं | बराबर है । देखो अङ्गमेंसे श्रीज्ञाताजी सूत्र छठ्ठा अङ्ग है उसके सोलहवें अध्ययन से साफ जाहिर होता है कि- प्रतिमाजीको गहिना चढ़ानेका रिवाज सूत्रानुसार है । क्योंकि - ज्ञाताजी में लिखा है कि - ' जहा सूरियाभे' अर्थात् सूर्याभवन की तरह द्रौपदीने प्रभुकी पूजाकी । और सूर्याभदेवताका अधिकार श्रीरायपसेणीसूत्रमें ऐसे आता है कि उस सूर्याभदेवताने " जिणपाडमाणं अहयाई देवदूसजुअलाई नसेइ पुष्कारोहणं मल्लारोहणं गंधारोहणं चुण्णारोहणं वत्था रोहणं आभरणारोहणं करेइ " अर्थात् भगवान्की मूर्तियां पर वस्त्र सुगन्ध और आभूषण ( दागिने) चढ़ाये | अब देखिए जैसे सूर्याभदेवताने दागीने चढ़ाये वैसे ही द्रौपदीने भी चढ़ाये थे, यह बात श्रीज्ञातासूत्र के मूलपाठसे साफ जाहिर होती है । इस 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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