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चाहिये कि-'वीतराग प्रभु कमाने नहीं गये जो उनका द्रव्य कहा जावे.' बेचरदासके बेवकूफी वाले इस कथन पर खद होता है। क्या जो द्रव्य जिसका कमाया हुआ हो वही उसका कहा जाता है ? कदापि नहीं. जैसे राजा महाराजाओं के पास लाखों रुपयोंकी भेट चढती है तो क्या वह द्रव्य राजामहाराजाओं का नहीं कर जाता? अवश्यमेव कहा जाता है । कोईभी ऐसा नहीं कहता कि 'राज कमाने नहीं गया इस लिये वह द्रव्य राजाका नहीं हो सकता।
बेचरदास- आ द्रव्य छेज जैनसङ्घनुं अने आ नाणा जैनसमाजना उपयोगी कार्यमां न वापरी शकाय एवो शास्त्र तरफनो कोई पण वांधो आगमोंमां छेज नहीं. आगमोना मारा अभ्यास परथी हुं तमने खात्री आपी शकुं. आवा द्रव्यनो स्वीकार पण त्यां नथी।
___ समालोचक-बेशक रक्षणकरनेके लिये समस्त जैन सङ्घ देवद्रव्यका मालिक है न कि भक्षण करने के लिये. अर्थात् देवद्रव्यकी वृद्धि करके उससे अनेकस्थलों पर देवमंदिर बने ऐसा प्रबन्ध करें और प्रभुके आभूषण वगैरह बनावें । परन्तु केवल देवके कार्यमें ही देवद्रव्य लग सकता है. अतः बेचरदासका यह कहना कि ' देवद्रव्य समाज उपयोगी किसी भी कार्य में लग सकता है ' यह अनन्तसंसारको बढानेवाला है । क्योंकि आगमशास्त्रों में इस विषय पर ऐसें २ बड़े दृष्टान्त दिये गये हैं कि अगर उनका यहां
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