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________________ (६४) इस लिये देवद्रव्यविषयके पोषक जितने शास्त्र हैं वे सब आगम अनुसार हैं तथा बेचरदासका यह कहना कि ' साधुओं प्रथम जङ्गलमें ही रहते थे' निरी गप्प है क्यों कि साधुओंके लिये शहरमें रहनेका निषेध किसीभी आगेमप्रमाणसे सिद्ध नहीं होता । शायद बेचरदासने गप्प मारनेकाही ठेका ले रक्खा होगा। हां वेशक जिनकल्पी या कितनेक स्थिविरकल्पी जंगलों में रहते थे. परन्तु सब साधु जंगलमें नहीं रहतेथे, इस लिये बेचरदासका ' साधुओ जंगलमांज रही' इत्यादि कहना कपोलकल्पित है । अगर नहीं तो किसी सूत्रका पाठहो तो बताएकि जिसमें साधुओंको शहरणे रहनेकी मनाई की है। तटस्थ-अजी ! आपके कहनेसे यह तो जान लिया कि सूत्र ग्रन्थमें शहरमें रहनेका निषेध नहीं होगा. परन्तु कहीं विधि है ( रहने का जिकर है ) क्या ? जब तक आप शहरमें रहनेकी. बिधिको आगम प्रमाणसें साबित नही करेंगे वहांतक भोले भद्रिक लोगोंकी समजमें बात नहीं आ सकेगी इस लिये कृपाकर साधुओंको शहरमें रहनेकी विधि बतलाइए जिससे बेचरदासका वह भाषण कि ' साधु लोग गाममें रहने लगे तब देवद्रव्यकी रूढि शुरू हुई; ' झूठा साबित हो जाय । समालोचक-देखिए-पैंतालिस आगममें श्रीनिशीथसूत्र भी है उसकी चूर्णिके दूसरे उद्देसेमें लिखा है कि-" गामाणुगामं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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