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________________ ( ६५ ) दुइज्माणा वेयाले गामं पत्ता, जइ य वसही न लभति ताहे बाहिं वसंतु, मा अदत्तं गिद्धंतु " इत्यादि । । भावार्थ- ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु लोक सन्ध्यासमय गामको प्राप्त हुवे होवे और उस गाममें वसति ( मकान ) न मिले तो बहार रहें परन्तु बगैर दिये हुवे मकानमें न रहें ' देखिये इस निशीवचूर्णिके पाठसे कैसा साफ सिद्ध होगया है कि-साधुओं को वसति न मिले तो बहार रहें. अब ' साधुओए जंगलोंमांज रही ' इत्यादि बेचरदासका कथन कितनी असत्यता से भरा हुआ हैं, वो पाठकजन स्वयं विचार कर लेंवें । देखिये इसी ग्रन्थके इसी उद्देसे में लिखा हुवा है कि- ' थले देउलिया गाहा, एगो गामो तस्स य मज्झे थलं तम्मि य थले गामेण मिलि देउलं कतं तत्थ साहु ठिता ' इत्यादि । अर्थ - एक गामके मध्य में स्थल है उस स्थलमें गामके लोगोंने मिलके एक देवल बन्धाया, उसमें साधु रहे । इस पाठसे भी गाम में रहना स्पष्ट सिद्ध होता है फिरभी इसी उद्देसेमें-- सव्वो पावरणगाहा, एगम्मि नगरे सेट्ठिघरे एगनिवेसणे पंचसयगच्छो वासासु ठितो' इत्यादि । अर्थ - एक नगर में एक सेठ के घर में पांचसौ साधु चौमासा रहे । देखिये इससे भी साधुओं का नगरनें रहना सिद्ध होता है, ऐसे निशीथसूत्र में अनेक स्थलों पर पाठ . आते हैं और देखिये व्यवहारभाष्यके पत्र ४८६ में लिखा है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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