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शथिलाचारी बन जाये ? अगर नहीं तो फिर जिन शिथिलाचारियों। ऐसा रिवाज निकाला उसके विरुद्ध शुद्धाचारियों की तरफसे उस वेषयका खण्डन किसीभी पुस्तकमें लिखा होना चाहिये जैसे कि जिनवल्लभमूरिकृतसंघपट्टकके सातवें कान्यकी टीकामें चैत्यवासिओं. का खण्डन करनेके लिये जिनपतिसूरि लिखते हैं कि-' तथा शङ्काशादिश्रावकाणां चैत्यद्रव्योपभोगिनामत्यन्तदारुणविपाकस्याऽऽगमेऽपि बहुधा श्रवणात्
भावार्थ-शंकाशादि श्रावकोंको देवद्रव्यके भक्षणसे भयङ्कर दुःख सहन करने पड़े । ऐसा आगमों में अनेक वार श्रवण करनेसे देवद्रव्यका भक्षण अनन्त दुःखप्रद है इस लिये हे चैत्यवासिओं ? चैत्यद्रव्यसे बने हुवे मंदिरों में रहना और देवद्रव्यकी वस्तुको उपभोगमें लेनी छोड़दो । यह तुम्हारा रिवान ठीक नहीं है, इत्यादि
चैत्यवासिओंका खूब खण्डन किया है । अगर जो देवद्रव्य शास्त्रसिद्ध न होता तो सङ्घपट्टकमें इस विषयका भी खण्डन करते कि 'हे शिथिलचारी चैत्यवासिओं, यह देवद्रव्य शब्द तुमने अपनी मतिकल्पनासे निकाला है-किसी भी शास्त्रमें नहीं हैं इस नूतनशास्त्रविरुद्ध कल्पनासे तुम अनन्तसंसारी होजाओगे इत्यादि लिखा होता; परन्तु किसी भी जैनग्रन्थमें ऐसा बर्णन नहीं है । इस लिये बेचरदासका यह कहना कि ' देवद्रव्य शिथिलाचारियोंका चलाया हुआ मार्ग है' महा मृषावाद है. बादमें उसने अपने भाषणमें कहा है कि उन शिथिलाचारियोंने इस विषयके संस्कृत ग्रन्
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