SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५) कर, पूर्वधर श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमण, देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण, आचार्य मल्लवादि, श्रीहरिभद्रसूरीश्वरादि जितने प्रभावक आचार्य हुए हैं और महाराजा सम्पतिराजा, कुमारपाल महाराज. विमलशाह, वस्तुपाल, तेजःपाल, पेथड़, शत्रुञ्जयआदितीर्थोद्धारक जितने प्रभावक श्रावक हुए हैं उन सबको अंधेरा तैरनेवाले जाहिर करके अपनी अकलकी कीमत बतलाई है, मुझे अफ़सोसके साथ बिचारे 'बेचरदासकी' कुबुद्धि पर दया आती है और उसकी कुबुद्धिको धिक्कार देते हुए मुझे कहना पड़ता है कि हाय ! इस दुष्ट बुद्धिने बेचारे बचरदास की आत्माको अंध नरकावनीमें पहुंचाने का प्रयत्न किया है, और जैनपत्रके एडिटरने भी पूर्वोक्त शासनप्रभावकपवित्र आचार्योंका एवम् श्रावकोंका तमस्तरणसूचक " तमस्तरण " नामक लेखको प्रकट करके उसने पवित्र जैननामको ही कलङ्कित नहीं किया बल्कि मनुष्य अपने उदरपूरणके लिये नीचसभी नीच कर्म करने पर उद्यत होजाता है यह साबित कर दिखाया है, उसने “ जैन ” पत्रको जैनाभास और जैनसमाजके लिए सहायक नहीं किन्तु निरर्थक कर दिखाया है और साथ ही अपने आपको अधोगतिमें पहुंचनेका लोंकोको भान कराया है, उसने और भी शासन विरुद्ध कार्य किये हैं परन्तु यहां अप्रासंगिक होनेसे नहीं लिखे जाते, अफसोस है कि बेचरदासने शासनप्रभावक आचार्योंकी निन्दक अपनी कुबुद्धि को रोकनेका-अपने हृदय से जूदा करनेका.. जरा भी प्रयत्न नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy