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अर्थ — प्रधान जिनमंदिर के बनानेमें ( १ ) जिनेश्वरप्रभुके बिम्बकी प्रतिष्ठा में (२) श्रेष्ठ पुस्तकों को लिखानमें ( ३ ) और सुतीर्थ यानी ( ४ ) साधु . ( ५ ) साध्वी ( ६ ) श्रावक ( ७ ) श्रात्रिका इन सान क्षेत्र और प्रभुकी पूजामें धर्मिष्ठगृहस्थ अपने द्रव्यको वितरण करता है ( लगाता है ) ॥ ३१ ॥ भत्तपन्ना के इस मूल पाठसे भी देवद्रव्य सिद्ध हुआ । क्योंकि कोई मनुष्य भगवान् की भक्ति के निमित्त घर-गाम - शहर देश आदिको समर्पण करे ( इस इरादे से कि ' मेरेको इस भक्तिका लाभ हो,' तो वह देवद्रव्यही कहा जाएगा । क्योंकि उसने देवकी भक्तिके निमित्त वह द्रव्य चढ़ाया है ।
देखिये ! इसी तरह श्रीरायपसेणी सूत्र में भी सूर्याभदेवता के अधिकारमें पाठ आता है -
' तरणं से सूरिया देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहिय बहूहिं सूरियाभविमाणवासिहिं देवेहिं देवीहिय सद्धिं संपरिवुडे सव्वाढिए जाव वाइयरवेणं जेणेव सिद्धाययणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सिद्धाययणस्स पुरथिमिल्लेणं दारणं अणुपविसति अणुपविसित्ता जेणेव देवछंदए जेणेव जिणमडिमाओ तेणेव उवागच्छा उवागच्छित्ता जिणपडिमाणं आलोय पणामं करोति करिता लोमहत्थगं गिण्हइ, जिणपडि - माणं लोमहत्यणं पमज्जइ, पमज्जित्ता जिणपडिमाओ सुरभिणा
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