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________________ (४५) इतनी हानि होगी कि अनन्त भवों तक नरक निगोदमें रुलनापड़ेगा । इस लिये अब भी मैं बेचरदासको हितबोध करता हूं कि . किसी गीतार्थगुरुसे इस बातका प्रायश्चित्त लेकर अपनीः आत्माका कल्याण करो । और मवभ्रमणके भयसे डरो । तथा अपनी मनः कल्पना को दूर करो । . तटस्थ-आ हा हा ! आपने तो मामला आखिर तक पहुंचादिया । यानि लगभग श्रीमहावीरप्रभुके समयमें बने हुए ग्रन्थोंका भी हवाला देकर हमारी तसल्ली करदीकि-' महावीरप्रभुके समयमें भी देवद्रव्यसूचक ग्रन्थ मौजूद थे ' मैं आपका बड़ा भारी उपकृत्यहूं। अब आप कृपाकरके देवद्रव्यको पञ्चाङ्गीसे साबित करदेंकि जिससे फिर किसी तरहकी शंका न रहे । क्योंकि-जब पैंतालीस आगमों से किसी भी आगमका प्रमाण देकर देवद्रव्यको साबित करदेंगे तो बेचरदासका तो क्या परन्तु उसके पेगंबरकामी वचन जैनसमाजको मान्य नहीं होसकेगा। समालोचक-लो ! अब आगमोंके पाठसे देवद्रव्य सिद्धकर दिखाते हैं। देखिये ! पैंतालीस आगममें भत्तपइन्ना नामका सूत्र है उसके. मूलमें वर्णन है कि"नियदव्यमउव्वजिणिंदभवणजिणविवरपइठासु । विअरइ पसत्यपुत्थयसुतित्यतित्थयरपूआसु ॥३१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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