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________________ ( २७ ) मानेगा ? | अतः बेचरदासका यह कथन केवल कपोलकल्पित सिद्ध आ कि - 'जैनागम में देवद्रव्य नहीं है' ऐसे ऐसे पाठ होनेपरभी न मालूप क्या कारण है कि बेचरदास स्वयं मूढ बनकर औरोंको मूढ़ बनाता है । अस्तु, देवद्रव्यके विषय में और कोई शास्त्रका प्रमाण सुनाइए । समालोचक – देखिये ! नागपुरीयतपागच्छाधीश श्रीमद् रत्न-शेखरसूरि महाराज अपने बनाये हुए श्रीपाल चरित्रमें फरमाते है— कि - अरिहंतपए धवले, चंदण कप्पूरलेवासियवण्णे | eshhaणचतीसहीरयं गोलयं गवियं ॥ ८५ ॥ सिद्धपए पुण रत्ते, इगती सपवालमट्ठमाणिकं । नवरंग घुसिणविहियप्पलवगुरुगोलयं ठवियं ॥ ८६ ॥ कणया सूरिपए, गोलं गोमेयपंचरयणजुअं । छत्तीसकणयकुसुमं चंदणघुसिणंकियं ठवियं ॥ ८७ ॥ उज्झायपए नीले, अहिलयदलनीलगोलगं ठवियं । चरिंदनीलकलियं, मरगयपणवीसपयगजुअं ॥ ८८ ॥ साहुप : पुण सामे, समियमयं पंचरायपट्टकं । सगवीसरिट्ठमणि, भत्तीए गोलयं उत्रियं ॥ ८९ ॥ सेसेसुं सियपसुं, चंदणसियगोलए ठवइ राया । सगसगवण्णा सयरिपण्णमुत्ताहलसमे ॥ ९० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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