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________________ (११३ ) . . बेचरदासका दिल क्यों खींचाता है ? वह कहता है कि-'यह सब एक प्रकारका नाटक है इसे साधु क्यों नहीं हटाते । इसके जवाबमें मालूम हो कि यह फक्त नाटकही नहीं किन्तु मोक्षनगरका फाटकभी ( दरवाना ) है । साधु ऐसे धर्म नाटकको कदापि नहीं हटा सकते । क्योंकि धर्म नाटकसेही नृपति रावणने तीर्कङ्करगोत्र बांधा है। इस बातको अच्छी तरहसे जाननेवाला जैनसमाज इस धर्मक्रियाके नाटकसे कदापि नहीं हट सकता । हां जिसको नरकगोत्र बांधनाहो, वह इस अपूर्व प्रभुभक्तिमार्गसे हट जायतो कौन रोक सकता है ? बाकी 'वैष्णव जैसा' इत्यादिभी उसका कहना ठीक नहीं है, क्योंकि वैष्णव दो पैसे धर्ममें खरचें तो श्रावक क्या न खरचे ? अगर वैष्णव उनके देवकी पूजा करें तो श्रावक अपने देवकी पूजा न करें? अगर वैष्णव अपना वैष्णवी भावसूचक तिलक करें तो जैन जैनभावसूचक तिलक न करें ? अगर वैष्णव भक्ष्यभोजन करेंतो श्रावक न करें ! अगर वैष्णव दया पालेतो क्या श्रावक दया न पालें ? कदापि नहीं । हां जिस तरह वैष्णव सरागी देवको मानते है उसी तरह जैनोंको सरागी देवको मानना उचित नहीं है । पर क्या वीतराग देवकीभी भक्ति नहीं करनी चाहिये ? हा जैनसिद्धान्तबाधकरिवाज न होने चाहिये । क्या एक पालना झुलाया उसीमें वैष्णवपन आगया ? कदापि नहीं। स्वप्न उतारने पालना झुलाना आदि क्रियाएं प्रभुकी पुण्याईका फोटो है । उसे देखकर भक्तजनोंके दिलमें यह भाव आता हैकि-अहो, जिनदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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