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वगकोभी मूर्तिपूजन पापका कारण बन सकता है ? कदापि नहीं। बस इसी तरहसे वेचरदासकोभी स्वप्न उतारनकी क्रिया परिणतिकी विषमतासे पापका कारण हो परन्तु आस्तिकजैनभाईयोंको तो पुण्यबंधन या निर्जराका ही कारण है। और इस विषयमें सूत्र पाठ नहीं देते हुए मात्र कल्पसूत्रकीही साक्षी देता हूं कि, देखो चौदहपूर्वधर श्रीभद्रबाहुस्वामीने द्वितीय तथा तृतीय बांचनीकी अदर अपनी बाणीद्वारा स्वमोंकी कैसी महिमा गाई है। जब चौदह पूर्वधर महात्माके मुखसे निर्गतअनर्गलविशेषणोंसे विशिष्ट स्वप्नोंकी महिमा जो जैन जन न करें तो फिर इनके जैसा परलेदर्जेका नास्तिक ही कौन बन सकता है ? अपने युगप्रधान शिरश्छत्र पितामह चौदह पूर्वधर भद्रबाहुस्वामी स्वप्नोंकी महिमामे लगभग दो बांचनी जितना वर्णन करें और श्रावक वर्ग घंटे दो घंटे नितने टाइम से और थोड़ेसे पैसे खरचनेसे ही घबरा जायं तब उसके जैसा हतभागी कौन ? अगर वेचरदासके कथनानुसार पुत्र वगैरके और जहाजके व्यापारी मनुष्य अमुक अमुक स्वप्न लेने हैं तो इससे भी वे पापके भागी कैसे हो सकते हैं ? तुम्हारे जैसे श्रद्धाबगैरके आदमीसे पुत्रादिसंसारीकामनाके निमित्त भी श्रद्धापूर्वक धर्मक्रिया के करनेवाले अच्छे हैं । हां, उनकी करणी मोक्षके निमित्त नहीं हो सकती परन्तु पापमयक्रिया नहीं है । मात्र ऐसा कहा जा सकता है कि जैनधर्मकी क्रिया करनी और उसमें संसारकी वाञ्छा रखना ठीक नहीं है परन्तु ऐसे धर्म करनेसे पापबंधन होता है ऐसा उल्लेख
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