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पाप
रूढि मालूम पड़े तो क्या
सृष्टि: '
हजारों रुपैये खरच करके बड़े बड़े स्नात्र महोत्सव करते हैं, उसी तरह चौदह सुपने भी प्रभुगुणके स्मरणमें कारण होनेसे जिसप्रका रसे गुणस्मरणमें आदरकी दृष्टिसे देखे जावें उसी प्रकार से पुण्यरूढिके सूचक हैं । भाग्यहीन बेचरदासको उपायहो । उपायहो । ' यादृशी दृष्टिस्तादृशी अन्यधर्मावलंबीभी जैनधर्मकी जैनधर्मकी कितनीक पवित्र क्रियाओंको अपवित्र मानकर पापरूढि कह देते हैं तो क्या उन मिथ्या दृष्टिओंका कथन सत्य हो सकता है ? कदापि नही । इसी तरह बेचरदासका कथन भी मिध्यात्वप्रेरित होनेसे असत्य समझना चाहिये । महावीर प्रभुके गर्भागमनसूचक स्वप्न उतारने समय प्रभुके गुणोंमें एसा चित्त आकर्षण होता है कि इस चित्त आकर्षण से पुण्यबन्ध हुए वगैरे नही रह सकता और कितनेक विशेष भाग्यशाली जीवों को तो यह प्रथा निर्जराकाभी कारण बन जाती है । परन्तु नास्तिक बेचरदासको अपनी उम्र में शायद दुर्भाग्यवश ऐसा भावही नहीं आया होगा । जिससे स्वप्न उतरने की पुण्यरूढि को भी पापरुटि बतलाता है। हां, बेचरदासके लिये उन स्वप्नों पर द्वेष आने से पापक्रिया बन सकती है, परन्तु सब के लिये नहीं | जैसे प्रभुकी मूर्ति इंढियोंको अप्रीतिका कारण हो जानेसे पापबन्धनका हेतु मालूम हुई और इस विषय में पञ्जाबके ढूंढिये तो उदाहरण रूप है हीं परन्तु गुजरात में भी लीबड़ी, बोटाद आदि के ढूंढियेभी उदाहरण रूप हैं, तो क्या इससे श्वेतांबर मूर्तिपूजक -
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