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________________ (१०८) दासके इस मिथ्याकथनको कदापि सम्मान नहीं देसकता । शास्त्रोंमें तीर्थङ्कर महाराजाओंको अनुपम उपकारी माने हैं, तथापि बेचरदास उन्होंके किये हुए उपकारोंको किसी अधमवांछाको पूर्ण करने के लिये दबाना चाहता है । परन्तु अनेक सूत्रोंसे प्रसिद्ध प्रभुउपकार कदापि नही दब सकता, हां, वेचरदासने अपनी जिस अधम मनोवान्छासे यह कपोलकल्पना जाहिर की है उस वाच्छाको ही दबाना पड़ेगा। बेचरदास-' आजना अमूल्य प्रसंगे मने मारूं अंतःकरण खाली करवा दो, आपणामां पजुषण पर्वमां ऐवो रिवाज छेके चौदसुपना श्री महावीरना जन्म दिने उतारवां, हवे आ स्वप्न उतारवामां अटलं बधुं पुण्य मनाय छेx x x x x पण मारे खुल्ला दिलथी अने शास्त्रों अने आगमोंना पुरावा परथी जणावी देवू जोइये के आ रूढि पुण्यनी नहीं पण पापनी छे" इत्यादि समालोचक-सुपने उतारनेके विषयमें भी वेचरदासने युक्तिशून्य कथन किया है और साथमें अपनी धूर्तताका पठिजकमें परिचय दिया है क्यों कि लोगोंके सामने मिथ्याडम्बर तो इतना जाहिर किया है कि-शास्त्र और आगमों के अनुसार सुपने उतारने विरुद्ध हैं ऐसा बकवाद तो कर दिया परन्तु श्रीहरिभद्रसूरि महारज, श्री विजयहीरसूरि महारान जैसे एक भी प्रामाणिक Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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