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________________ (१७) त होता है कि बाह्यसामग्रीके बिलकुल अभावमें या अल्पतामें भी तीव्रमनोदुष्टता होनेसे जीव विशेषअधोगतिका भागी बन सकता है। कर्मसिद्धांतका ज्ञान तो इस पामरको क्या होना था परंतु लोकविषयका ज्ञानभी विचारको नहीं है । देखिये ! एक आदमीको कांटा लगता है और वह मर जाता है और एक आदमीको गोली लगती. है तोभी नहीं मरता, जिम आदमीको एक मामुलीसा ज्ञानभी नहीं ऐसा आदमी जनसाहित्यपर विचार करे यह भी एक आश्चर्यकी बात है कहावत भी है कि ' रत्नपरिक्षक जानिये, जोहरी नहीं गंवार ' यानी गंवार कदापि रत्नोंकी परीक्षा नहीं कर सकता किन्तु जोहरी ही कर सकता है मैं कहां तक लिखू , बेचरदासकी तमाम बाते जहालतसे भरी हुई हैं । जहालत भी वहांतक जाहिर की है कि परले दर्जेके महात्मा उपकार भी नहीं करते । इस बातको कहते वक्त वेचरदासने जहालतका खजाना ही खाली कर दिया है. क्यों कि दुनिया की कोई भी विदुषी व्यक्ति इस बातको स्वीकार नहीं कर सकती कि परले दर्जेके महात्मा उपकार शून्य हों। महात्माओंकी ऐसी कोई भी क्रिया नहीं जिसके द्वारा जगतका उपकार न हो । ऐसी झूठ गप्प मारनेमें बेचरदासका यह अभिप्राय होना चाहिये कि तीर्थङ्कर प्रभु जगत्के उपकारी सिद्ध न हों तो जैनसाहित्य अन्यकृत सिद्ध हों। और ऐसा होनेसे वेचरदासकी. मनोवृत्तिको पुष्टि मिले । परन्तु वह दिन कहां जो मियांके. पांवमें जुत्ती' जैन समाज अपने शास्त्रकथनको छोड़ कर बेचर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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