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________________ ( १०० ) ऐसे विशेषण श्रावकशब्दसे पहिले सूयगडांगके धारक श्रावक नहीं लगाये हैं, इससे भी सिद्ध होता है कि अधिकार न होनेसे यह निषेध साधुओंकाही किया हुवा नहीं किन्तु प्रभु महावीरस्वामीका किया हुआ है अगर इस विषय में विमोहित होकर जो सूत्र ग्रन्थोंको पढ़ते हैं वे अवश्य बेचरदासकी तरह भ्रष्ट हो जाते हैं । 1 तटस्थ — आ हा ! हा ! इतने पाठोंके होने परभी पंडित बेचरदासको एकभी पाठ नहीं सूझा यह बड़ा आश्चर्य है । और उसका यह कहना कि 'मैं ग्यारह अंग पढ़ा हूं उनमें कहीं भी श्रावकको सूत्रपढ़नेका निषेध नहीं किया है' सरासर झूठ I क्या ऐसे झट बोलकर दुनियाको ठगनेसे वह सुखी बनेगा ? कभी नहीं | हाय हाय, अज्ञानी जीवोंकी कैसी लीला है कि केवल इस लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिये मिथ्या ( झूट ) बोलते जराभी नहीं डरते । शासनदेव ऐसी आत्माको बचावे | आप और कोई स्पष्ट पाठ बतलाइए जिससे लोगों पर उपकार हो । समालोचक — दसवें अङ्ग श्रीप्रश्नव्याकरणमें ऐसा साफ पाठ आता है कि जिससे श्रावक सूत्र नहीं पढ़ सकता ऐसा साबित होता है । तथा च तत्पाठः–“ तं सच्चं भगवंत तित्थगर सुभासिअं दसविहं चउदसपुव्विहिं पाहुडत्थवेश्यं महरिसीण य समयप्पदिनं देविंदनरिंदे भासियत्थं " । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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