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________________ (९९) परियागस्स समणस्स कप्पति ठाणसमवाए नामं अंगे उद्दिसित्तए । दसवासपरियागस्स कप्पति विवाहे. ना अंगे उदिसित्तए । ___ भावार्थ-तीन वर्षके पर्यायवाले साधुको आचारप्रकल्प बाचना कल्पता है । चार वर्षकी दिक्षापर्यायवालेको सूयगडांगसूत्र पढ़ना कल्पे । और पांच वर्षकी दिक्षा पर्यायवालको दशाकल्पव्यवहार अध्ययन करना कल्पता है आठ वर्यकी दिक्षापर्यायवालेको ठाणांग और समवायांग सूत्र पढ़ना कल्पता है । दश वर्षकी दिक्षापर्यायबालेको भगवतीसूत्र पढ़ना कल्पता है । इत्यादि पाठ है। अंतमें वीस वर्षकी दिक्षा पर्यायवाले साधुको सर्वसूत्र पढ़ने कल्पते है । अब विचार करो कि साधुभी अमुक २ वर्षकी दिक्षापर्याय हुवे बाद अमुक २ सूत्र पढ़ने लायक होतो फिर गृहस्थ कि जिसको एक दिनकामी दिक्षा पर्याय नहीं है वह सूत्र कैसे पढ़ सकता है ? केवल श्रावक के लियेही सूत्रपढ़नेका निषेध नहीं है किन्तु साधुकोभी तीन वर्षकी पयाय पहिले पूर्वोक्त सूत्रोंमेंसे एकभी अंग सूत्र पढ़नेका हुकम नहीं है । तथा श्रीउववाईसूत्रमेंभी लिखा है कि " अत्थेगइया आयारधरा, अत्यगइया सूअगडंगरा" अर्थात् कितनेक साधु आचारांगके जाननेवाले और कितनेक सूयगडांग सूत्रके जाननेवाले ऐसे साधुओंके नामसे प्रथम विशेषग लिखे होते हैं । परन्तु किसीभी जैन आगम ग्रन्थमें आचारांगके धारक या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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