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________________ (१०१) भावार्थ-तीर्थङ्कर भगवान्ने दश प्रकारका सत्य कहा है और साधुजनोंको सूत्र ज्ञान दिया. और देवेन्द्रनरेन्द्रोको सूत्रका अर्थरूप ज्ञान दिया है इस पाठसभी साफ जाहिर होता है कि-खास परमकृपालु भगवान् महावीर प्रभुनेभी अधिकार वगैर श्रावकोंको सूत्रज्ञान नहीं दिया किन्तु अर्थज्ञान दिया था। इस पाठसेभी साफ जाहिर है कि श्रावकों को सूत्र पढ़नकी मनाई प्रभु महावीर स्वामीके समयसेही है इतनाही नहीं बल्कि तमाम तीर्थकर प्रभुओंका यही कथन है कि श्रावकसूत्र न पढ़े । बस यही कारण है कि अगर साधु श्रावकको सूत्र पढ़ावें तो साधुको प्रायश्चित आता है । देखिये श्रीनिशीथ पूत्र का पाठसे “ भिरकु अगरयित्थं वा गारत्थियं बा वाएइ वायंतं वा साइजइ तस्सणं चाउम्मासियं ". अर्थ---जो साधु अन्यतीर्थिको या गृहस्थीको वाचना देवे या वाचना देनेवालेको सहायता देवेतो उसको चातुर्मासिक प्रायश्चित आवे ! इन सब पाठोंसे अच्छी तरहसे साबित हुवाकि श्रावक सूत्र नहीं पढ़ सकता। पाठक जनों ! श्रावक सूत्र नहीं पढ़े इस विषयका शास्त्राधारसे साधुलोग जब विधिवाद बताते हैं तब बेसमझ बेचरदास कहता है कि -" आ गप्प जे तद्दन ज शास्त्र विरुद्ध छे ते शा माटे मार• वामां आवी हशे ! " अब जरा विचार करोकि येचरदासको विना प्रमाणकी बातें मान्य करने लायक हैं? या प्रमाग पुरःसर शास्त्रकारों की बातों मान्य करने योग्य हैं ? । अगर तुन ( पाठक वर्ग ) दग्वबीज नहीं हो तबतो शास्त्र के प्रमाणकोही मान्य रखकर स्वयं गृहस्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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