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________________ चिन्तन का क्षितिज (साप्ताहिक हिन्दुस्तान (२ जुलाई १९८९) में अध्यात्म स्तंभ के अंतर्गत 'महाप्रज्ञ उवाच' शीर्षक से आचार्यश्री महाप्रज्ञ के चिन्तन की मौलिकता के कुछ बिन्दु प्रकाशित हुए । प्रस्तुत आलेख में वह अविकल रूप में प्रस्तुत है ।। --संपादक अध्यात्म का रहस्य बहुत विचित्र घटनाएं घटित होती हैं । मन में कोई भी विकल्प उठा, एक विचार आया और हमने उसकी उपेक्षा कर दी । इसका परिणाम यह हुआ कि वह बीज बो दिया गया और बीज जब बड़ा होगा तो निश्चित ही अपना परिणाम लाएगा। हम दुनिया की घटनाओं को देखें । पचास-साठ वर्ष तक जिस व्यक्ति का जीवन यशस्वी रहा, जिस व्यक्ति का पूर्वार्द्ध पूर्ण तेजस्वी और उदितोदित रहा, वही व्यक्ति अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में पतित हो गया, नष्ट हो गया । हमें आश्चर्य होता है कि यह कैसे हुआ ? जो व्यक्ति पचाससाठ वर्ष तक यशस्वी और तेजस्वी जीवन जी लेता है वह आगे के वर्षों में पतन की ओर कैसे जा सकता है | हम सामान्यतः इसकी व्याख्या नहीं कर सकते । किंतु ऐसा घटित होने के पीछे भी कुछ कारण अवश्य होते हैं । यदि हम सूक्ष्मता से ध्यान दें, गहराई से सोचें तो यह तथ्य स्पष्ट होगा कि बीज बोया गया था, उसका प्रायश्चित्त नहीं हुआ, वह वृक्ष बन गया, घटना घटित हो गयी। प्रायश्चित्त यही ता है कि जिस क्षण मन में राग का संस्कार उत्पन्न हुआ, जिस क्षण मन में द्वेष का संस्कार उत्पन्न हुआ, उसे धो डालो, सफाई कर दो, परिवर्तन कर दो । फिर वह सताएगा नहीं । बीज को नष्ट कर दिया, वह सताएगा नहीं । बीज को नष्ट कर दिया, वह वृक्ष नहीं बन पाएगा । प्रायश्चित्त नहीं होता है तो बीज को पनपने का मौका मिल जाता है । अंकुरित होने का मौका मिल जाता है । कालान्तर में वह वृक्ष बन जाता है, उसके फल लग जाते हैं, उसकी जड़ें जम जाती हैं। अब हमारे वश की बात नहीं रहती। हमें उसके फल भुगतने ही पड़ते हैं । फल भुगतने के लिए हमें बाध्य होना पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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