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________________ ६८ समस्या को देखना सीखें प्रकार से सोचता और एक ही प्रकार से काम करता परन्तु वह यांत्रिक नहीं है । वह अपनी पूर्ण चैतन्य-सत्ता का उपभोक्ता है इसलिए वह अपने-आप में पूर्ण स्वतंत्र है । वह एक ही प्रकार से नहीं सोचता और एक ही प्रकार से नहीं करता । वह उसकी सहज प्रवृत्ति है। किन्तु मनुष्य मनुष्य-जाति की इस सहज प्रवृत्ति को ही सुलह या युद्ध का हेतु बना रखा है। सापेक्षता में अविश्वास करने वाले इस बात को भुला देते हैं— 'मनुष्य यांत्रिक नहीं है । वह अपनी पूर्ण चैतन्य-सत्ता का उपभोक्ता है ।' इस विस्मृति का परिणाम ही असह-अस्तित्व है | जिनको सह-अस्तित्व में विश्वास नहीं है, उन्हें मानवता में विश्वास नहीं है । उनका विश्वास मनुष्य को यांत्रिक बनाने में ही है। किन्तु यह मनुष्य-जाति के प्रति बहुत जघन्य अपराध है। सह-अस्तित्व का अर्थ है—मनुष्य के सोचने, करने तथा अपने ढंग से चलने की स्वतन्त्रता में विश्वास | ‘या मैं या तुम' यह विनाश का मार्ग है विकास का मार्ग यह है कि 'मैं भी रहूं और तुम भी रहो' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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