SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० आक्रमण और प्रत्याक्रमण + गुरुदेव श्री तुलसी अहिंसावादी हैं । अहिंसा की सक्रिय आराधना में वे प्राणपण से संलग्न हैं । उनकी आत्मा युद्ध का क्या किसी छोटे से छोटे विग्रह का भी समर्थन नहीं कर सकती । वे आक्रमण को घोर हिंसा मानते हैं । प्रत्याक्रमण उनकी दृष्टि में अहिंसा नहीं है, किन्तु आक्रमण और प्रत्याक्रमण भी एक कोटि की हिंसा है, यह भी उनका अभिमत नहीं है । आक्रमण घोर और अनर्थकारी हिंसा है। इसलिए उसके समर्थन का प्रश्न ही नहीं आता । प्रत्याक्रमण भी अहिंसा नहीं है इसलिए उसका समर्थन भी एक अहिंसावादी कैसे कर सकता है ? किन्तु जैसे आक्रमण का तिरस्कार या विरोध किया जा सकता है, वैस प्रत्याक्रमण का तिरस्कार या विरोध नहीं किया जा सकता । समस्या को देखना सीखें चिन्तन की भ्रान्ति कुछ अहिंसावादी लोग, जिनका हिंसा और अहिंसा-सम्बन्धी चिन्तन बहुत स्पष्ट नहीं है इस पर आश्चर्यचकित हैं कि आचार्य श्री तुलसी ने युद्ध का विरोध नहीं किया । उनका मानना है कि भारत अहिंसा और निःशस्त्रीकरण की बातें और युद्ध टालने का प्रयत्न करता रहा है। आज जब उस पर संकट आया तो वह तत्काल शस्त्रीकरण करने तथा युद्ध करने में संलग्न हो गया । जब कोई संकट न आए तब अहिंसा की बात और जब संकट आए तब युद्ध, यह कैसी अहिंसा ? यह तो कसौटी का समय है । इसी समय उसे अहिंसा के द्वारा हिंसा को परास्त कर विश्व के सम्मुख एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए था । यह चिंतन अहिंसावादी के लिए सर्वथा अर्थशून्य है, यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह सर्वथा भ्रान्तिशून्य है और यह भ्रान्ति इसलिए उत्पन्न हुई है कि उनकी मान्यता के अनुसार अहिंसा के द्वारा सब निष्पन्न हो सकता है। मर्यादा का बोध करें गुरुदेव श्री तुलसी अहिंसा की मर्यादा और उसके निश्चित परिणाम में विश्वास करते हैं । वे कहते हैं— मैं अध्यात्म और अहिंसा के प्रति पूर्ण आस्थावान् हूं, फिर भी उनसे (राष्ट्र और समाज की ) सारी समस्याओं का समाधान होता है— इसे मैं भ्रम मानता हूं। भौतिक उपकरणों पर स्वत्व का विसर्जन करें तो सारी समस्याएं अध्यात्म तथा अहिंसा से सुलझ सकती हैं । किन्तु उन पर स्वत्व स्थापित रखना चाहें और शस्त्र -सज्जा से विमुख भी रहना चाहें तथा (जब) अहिंसा से सब भौतिक उपकरणों की सुरक्षा न हो तब उसे असफल भी बताएं - यह दुहरा - तिहरा भ्रम है। हमें हिंसा और अहिंसा की मर्यादा और उनके परिणामों को समझकर ही चलना चाहिए । भारत एक राष्ट्र है । वह भूमि, अर्थ, पदार्थ, सत्ता और अधिकार का संगठित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy