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________________ युद्ध और अहिंसा ४९ प्रत्येक राष्ट्र के अधिकार के प्रति आदर । ६. किसी भी बड़ी शक्ति के स्वार्थ की पूर्ति के लिए सामूहिक सुरक्षा के आयोजनों के उपयोग से अलग रहना, एक देश का दूसरे देश पर दबाव न डालना । ७. ऐसे कार्यों, आक्रमण अथवा बल-प्रयोग की धमकियों से अलग रहना, जो किसी देश की प्रादेशिक अथवा राजनैतिक स्वाधीनता के विरुद्ध हों। ८. सभी आन्तरिक झगड़ों का शान्तिपूर्ण उपायों से निपटारा करना । ९. पारस्परिक हित एवं उपयोग को प्रोत्साहन देना | १०. न्याय और अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के लिए सम्मान । स्वत्व और कूटनीति १३ जून, १९५५ को नेहरू -बुलगानिन के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर होने के साथ पंचशील का तीसरा सिद्धान्त और भी व्यापक रूप में स्वीकार किया गया । तीसरे सद्धान्त का जो नया रूप बना, वह इस प्रकार था- किसी भी राजनीतिक, आर्थिक अथवा सैद्धान्तिक कारण से एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करना । भारत ने अपने शान्ति-प्रयत्न और भी तीव्र कर दिये थे । उसके शासक संभवतः इस तथ्य को भुला चुके थे कि जहां भौतिकता होती है, वहां स्वत्व होता है और जहां स्वत्व होता है, वहां सुरक्षा भी आवश्यक होती है, और इस तथ्य को भी विस्मृत कर चुके थे कि कूटनीति की छाया में पलनेवालों का अंतस्तल कभी भी अपने को बाह्य जगत् में प्रकट नहीं करता । भारत में चीन का आक्रमण होने पर ही उनको इस सत्य का साक्षात् हुआ कि भारत-जैसे शान्तिप्रिय और शान्तिरत देश पर भी कोई आक्रमण कर सकता है और वह भी एक प्राचीन मित्र । तीन विचार श्रेणियां वर्तमान युद्ध का अतीत यह है और वर्तमान सामने है । युद्ध का समय सबके लिए बड़ा विकट होता है। उसके समर्थन और असमर्थन का प्रश्न ज्वलन्त हो जाता है | इस समय सिद्धान्तवादी लोग लगभग तीन विचार-श्रेणियों में बंटे हुए हैं : १. आक्रमण में विश्वास रखने वाले हिंसावादी। २. प्रत्याक्रमण में विश्वास रखने वाले मध्यममार्गी । ३. अनाक्रमण में विश्वास रखने वाले अहिंसावादी । अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवाद में विश्वास रखने वाले हिंसावादी लोग जैसे अपने देश के प्रति कोई विशेष अनुराग नहीं रखते, वैसे ही प्राणी-मात्र के प्रति सद्भावना में विश्वास रखन वाले अहिंसावादी भी किसी देश विशेष के प्रति अनुराग नहीं रखते, किन्तु दोनों एक श्रेणी के नहीं होते | हिंसावादी के सामने शत्र और मित्र का विभाग होता है । अहिंसावादी के सामने वह विभाग नहीं होता । वह किसी को शत्रु नहीं मानता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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