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________________ अहिंसा की मर्यादा ३१ की शक्ति से हिंसा की शक्ति परास्त नहीं होती, किन्तु परिवर्तित हो जाती है । अहिंसा में मारक शक्ति नहीं है । उससे हिंसक का हृदय प्रभावित हो सकता है, परिवर्तित हो सकता है, अहिंसक बन सकता है पर उसका प्रभावित परिवर्तित होना अनिवार्य नहीं है । अहिंसा की मर्यादा अहिंसा का स्वरूप है मैत्री का अनन्त प्रवाह । उसका जगत् सीमाओं या विभाजनरेखाओं से मुक्त होता है । राष्ट्र एक भौगोलिक सीमा है । इसलिए अहिंसा के सामने इस या उसकी सुरक्षा का प्रश्न ही नहीं होता । उसके सामने सबकी सुरक्षा का प्रश्न होता है । अहिंसा की मर्यादा है सबकी सुरक्षा -- प्राणी मात्र की सुरक्षा । एक की सुरक्षा और दूसरे की असुरक्षा यह अहिंसा की मर्यादा का भंग है । अहिंसा की मर्यादा है आत्मिक सुरक्षा । भौतिक सुरक्षा उससे हो सकती है— यह कहने की अपेक्षा यह कहना अधिक सरल है कि उससे नहीं हो सकती । शस्त्र-शक्ति से आत्मिक सुरक्षा नहीं हो सकती तब हम कैसे आशा करें कि अहिंसा की शक्ति से भौतिक सुरक्षा हो सकती है । प्रश्न प्रयोग और प्रयोक्ता का अहिंसा का अस्त्र आणविक अस्त्र से भी अधिक शक्तिशाली है किन्तु उसका प्रयोग शक्तिशाली व्यक्ति ही कर सकता है। हर व्यक्ति से उसके प्रयोग की आशा करना कठिन है । शस्त्र शक्ति का प्रयोग एक कायर आदमी के लिए संभव नहीं, वैसे ही अहिंसा की शक्ति का प्रयोग उस शूरवीर के लिए भी संभव नहीं, जिसके मन में परिग्रह और जीवन का मोह है तथा जिसका मन घृणा से भरा है । अहिंसा की शक्ति का सामान्य प्रयोग हर आदमी कर सकता है पर उसके असाधारण प्रयोग की अपेक्षा उन व्यक्तियों से ही की जा सकती है, जिनका प्रेम घृणा पर विजय पा चुका, जिनकी दृष्टि में मनुष्य केवल मनुष्य है-- जातीय, साम्प्रदायिक आदि बंधनों से मुक्त | अहिंसा की शक्ति के भिन्न स्तर नहीं हैं । किन्तु उसकी प्रयोग-शक्ति के अनेक स्तर हैं । हर स्तर से समान आशा कैसे की जा सकती है ? अहिंसा के प्रयोग की पद्धति भी हर व्यक्ति को ज्ञात नहीं होती । प्रयोग की पद्धति और क्षमता यदि प्राप्त हो तो अहिंसा के सामने हिंसा की शक्ति सफल नहीं हो सकती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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