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________________ अहिंसा की प्रतिकारात्मक शक्ति २७ भी अधिकांश भारतीय अहिंसा को कायरता मान बैठे हैं । वे सोचते हैं कि पराक्र मी लोग उसे नहीं अपना सकते । उनका यह चिन्तन कारण-शून्य भी नहीं है । हमारे यहां अहिंसा का जितना प्राणि-दया के रूप में विकास हुआ है, उतना प्रतिकारात्मक शक्ति के रूप में नहीं हुआ है। हम किसी को न मारें—यह अहिंसा का एक पक्ष है । इस करुणात्मक पक्ष से हम दूसरों पर अपने द्वारा होने वाले अन्याय से बच सकते हैं किन्तु कोई दूसरा हमारे पर अन्याय करे, उससे नहीं बच सकते । उससे बचने का उपाय है अहिंसा की प्रतिकारात्मक शक्ति का विकास । यदि यह हो तो कोई हमारे साथ अन्याय करने का दुस्साहस कर ही नहीं सकता । सफलता का प्रश्न पूज्य गुरुदेव अहिंसक प्रतिकार की बात कहकर जनता को कायर नहीं बनाना चाहते किन्तु उस कायरता से उबारना चाहते हैं, जो शस्त्र-सज्जा होने पर भी मन के गह्वर में छिपी रहती है । गुरुदेव ने यह नहीं सुझाया कि आपकी निष्ठा शस्त्र-बल में हो | मन में भय और कायरता छिपी हो उस स्थिति में आप अहिंसक-प्रतिकार करें । शस्त्र, भय और कायरता का अहिंसा से कोई मेल ही नहीं है । वे कहते हैं कि केवल भारत ही नहीं समूचा संसार अहिंसक-प्रतिकार का मार्ग अपनाए। पर अपनाए वही और उसी स्थिति में जब उसका पराक्रम आत्मा से प्रस्फुटित हो, मन का एक भी कोना भय से भरा न हो और शस्त्र पर से आस्था उठ गई हो । वे चाहते हैं कि भारत ऐसा शक्तिशली बने । मैं नहीं कहता कि उनकी कल्पना एक ही दिन, मास या वर्ष में सफल हो जाएगी किन्तु मैं मानता हूं कि कोई भी कल्पना एक दिन अवश्य सफल होती है। इसलिए उसकी सफलता में हमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए । प्रथम बार हम उसकी सफलता की परीक्षा करने का यत्न करें किन्तु यही देखें कि वह अच्छी है या नहीं। मुझे लगता है कि वह कल्पना बहुत अच्छी है । युद्ध समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। दास-प्रथा और राजतंत्र-प्रथा के विरोध का आदिम इतिहास भी सन्देह की संकरी पगडण्डियों में से गुजरा है पर आज कोई दास नहीं है और राजे भी इतिहास की वस्तु बन गए हैं। अहिंसा के प्रति जन-मानस में जो सन्देह है, वह निर्हेतुक नहीं है। अहिंसा में निष्ठा न रखने वाले ने करुणात्मक पक्ष को जिस रूप में प्रस्तुत किया, उस रूप में प्रतिकारात्मक पक्ष को नहीं । इसीलिए अहिंसक भी बहुत बार भीरुवत् व्यवहार करते दिखाई देते हैं। सही अर्थ में वे अहिंसक हैं भी कहां ? स्वतंत्र कर्म शक्ति प्रतिकारात्मक शक्ति का विकास स्थिति के अस्वीकार पर निर्भर है । हिंसा का अर्थ है स्थिति का स्वीकार और अहिंसा का अर्थ है स्थिति का अस्वीकार । यह तभी हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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