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________________ जीवित धर्म : राष्ट्र धर्म १९ समाज या राष्ट्र के लिए जनता उसे निश्चित करती है । वह व्यक्तिगत शुद्धि या रुचि के आधार पर नहीं बनती, किन्तु जनता के सामूहिक हितों के आधार पर निश्चित होती है । कर्तव्य धर्म हो सकता है पर वह धर्म ही है, यह नहीं होता । नीति धर्म हो सकती है पर वह धर्म ही है, यह नहीं होता । इसका फलित अर्थ यह है कि धर्म और कर्तव्य सर्वथा एक नहीं हैं। महात्मा गांधी अहिंसा को अपना धर्म मानते थे । कांग्रेस ने उसे नीति के रूप में स्वीकार किया था । धर्म आत्मा से अभिन्न होता है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता । नीति समय-समय पर बदलती रहती है। प्रश्न है सदाचार का आज हिन्दुस्तान के सामने धर्म, कर्तव्य और नीति—ये तीनों प्रश्नचिह्न बने हुए हैं। सदाचार को अपना धर्म मानकर चलने वाले लोग बहुत कम हैं । वह राष्ट्रीय कर्तव्य के रूप में भी नहीं अपनाया गया है। राष्ट्रीय नीति के रूप में भी उसे बहुत बल नहीं मिल रहा है । इसीलिए असदाचार सदाचार पर हावी हो रहा है । इस स्थिति को बदलने के लिए धार्मिक पवित्रता का वातावरण बनाना, कर्तव्यबुद्धि को जगाना और नीति का दृढ़ता के साथ निर्धारण करना ये तीनों अपेक्षित माने जाते रहे हैं । इस सचाई को हम अस्वीकार नहीं करते कि धार्मिक-बुद्धि भी नीति जितनी व्यापक नहीं हो सकती । नीति के साथ कानून की शक्ति है, इसलिए वह अनिवार्यता है । कर्तव्य के साथ दण्ड-शक्ति नहीं है । वह बौद्धिक-शक्ति का विकास है। धर्म आत्मा का आन्तरिक प्रकाश है | दायित्व किसका नीति स्थूल है, कर्तव्य सूक्ष्म है और धर्म सूक्ष्मतम । धर्म की मान्यता है तुम अच्छाई से भिन्न कुछ हो ही नहीं । कर्तव्य कहता है—तुम्हें अच्छाई का पालन करना चाहिए । नीति कहती है—तुम्हें अच्छाई का पालन करना होगा । ये तीनों रेखाएं अपने-अपने क्षेत्र में विकसित होती हैं, तब असदाचार सदाचार पर हावी नहीं हो सकता । नीति-निर्धारण का दायित्व सरकार पर है । कर्तव्यबुद्धि जगाने का दायित्व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर है | धार्मिक पवित्रता को विकसित करने का दायित्व धार्मिक गुरुओं पर है | वर्तमान स्थिति को बदलने के लिए यह अपेक्षित है कि कोई आदमीरिश्वत न ले और न दे । मिलावट न करे। व्यक्तिगत संग्रह को प्रोत्साहन न दे । दायित्व को लेकर जनता के प्रति अन्याय न करे । सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार करे । इन्हें राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय कर्तव्य और राष्ट्रीय धर्म के रूप में मान्यता मिलने पर वह सहज ही हो जाएगा, जो सब लोग करना चाहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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