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________________ जीवित धर्म : राष्ट्र धर्म मैं धर्म की उपासना करता हूं पर उसकी नहीं करता, जो मृत है | मैं उसकी उपासना करता हूं जो जीवित है । जीवित वही है जिसका वर्तमान पर अधिकार है । अतीत असत् होता है, इसलिए कि वह अपना कार्य कर चुकता है । भावी असत् होता है कि वह कार्यक्षम नहीं होता । सत् वर्तमान है । उसकी उज्ज्वलता से भूत चमकता है और भावी बनता है। तुम जीवित रहना चाहते हो तो कोरे अतीत के गीत मत गाओ। कोरी कल्पना की उड़ान मत भरो । आज क्या करना है, इसे सोचो, दो क्षण गहराई से सोचो।। तुम सहिष्णु हो, अनुशासित हो, स्थिरचेता हो, परिवर्तन की मर्यादा को जानते हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्वल है। अपनी भूलों को देखने, सुनने, स्वीकार करने और उनका परिमार्जन करने में तुम क्षम हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्वल है । दूसरों की अच्छाइयों को देखने, सुनने, स्वीकारने और अपनाने में तुम क्षम हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्व ल है। ___ धर्म इसलिए जीवित तत्त्व है कि उसमें वर्तमान उज्ज्वल होता है । वह इसीलिए शाश्वत तत्त्व है कि उसमें वर्तमान सदा उज्ज्वल होता है । धर्म, कर्तव्य और नीति धर्म व्यक्तिगत होता है । वह सामाजिक या राष्ट्रीय नहीं होता । जो सामाजिक या राष्ट्रीय होता है, वह धर्म का संस्थान हो सकता है, धर्म नहीं । धर्म का अर्थ है, आत्मा की पवित्रता । वह वैयक्तिक ही हो सकता है । कर्तव्य राष्ट्रीय हो सकता है । उसका अर्थ है नीति को क्रियान्वित करना । उसका सम्बन्ध आत्मा की पवित्रता से नहीं है, किन्तु दायित्व से है । नीति भी राष्ट्रीय हो सकती है । वह सामाजिक जीवन जीने की पद्धति है। समूचे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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