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________________ बुद्धि और अनुभूति डिग्री, अर्थ आदि का भेद बुद्धि करती है इसलिए ज्ञान से लोग घबराते हैं । बुद्धि और ज्ञान को दुःख का कारण समझने लगे, किन्तु सच्चा ज्ञान दुःख का कारण नहीं, सुख का हेतु है । ज्ञान के दो साधन प्रचलित हैं—सुनना और पढ़ना । ये दोनों ही साधन परिस्थिति से प्रभावित होते हैं और बाहर से ओढ़े हुए होते हैं । बाहर से आया हुआ कर्ज है, ऋण है । इसीलिए यह बाहरी ज्ञान बुद्धि को पराभूत एवं विचारों को विशृंखल करता है । ज्ञान वह है, जो आत्मा से फूटे और उसकी रश्मियां बाहर को आलोकित करें । ज्ञान के सम्बन्ध में बौद्धिकता के द्वारा ही भ्रांति आयी है । बुद्धि लड़ाई का कारण बनी । जितने वकील हैं वे लड़ाना जानते हैं, लड़ाते हैं । यह जरूर है कि बुद्धि ने लड़ाना भी सभ्यता से सिखाया है । आज सारी दुनिया शीत-युद्ध से घबराती है, आक्रान्त है । घाव पर मुलम्मा चढ़ा दिया गया किन्तु वह भीतर ही भीतर कैंसर का रूप ग्रहण कर रहा है । इस बुद्धिवाद से जो कठिनाइयां पैदा हो रही हैं, उनका समाधान आत्मानुभूति से ही प्राप्त हो सकेगा। इसके लिए धर्म और अध्यात्म को जानना होगा | धर्म बाहर की समस्याओं का भी अन्तर से ही समाधान देता है। वर्णमाला का पहला अक्षर अपनी आत्मानुभूति के तार को दूसरे की आत्मानुभूति के तार से जोड़ना ही धर्म है । प्राणीमात्र के प्रति तीव्र अनुभूति और एकता की अनुभूति ही धर्म है । बाहर में धर्म नहीं है । धर्म भीतर अनुभूति की गहराई तक पहुंचकर बुद्धि के द्वारा प्रस्तुत कठिनाइयों से बचाता है । हमें जागने की जरूरत है । ऋषियों ने कहा--- "उतिष्ठत जागृत---उठो, जागो ।" जागते हो तभी जीवन है। भिक्षु स्वामी के सामने सामायिक करते हुए श्रावक आसोजी नींद ले रहे थे । भिक्षु स्वामी ने पूछा- “आसोजी ! नींद ले रहे हो ?" "नहीं, महाराज !" आसोजी ने सचेत होते हुए झूठा जवाब दिया । थोड़ी देर में फिर नींद लेने लगे तो भिक्षु स्वामी ने टेका—“आसोजी ! नींद ले रहे हो ?' इस बार भी उन्होंने ना कर दी । तीसरी बार नींद लेने पर भिक्षु स्वामी ने पूछा--'आसोजी ! जी रहे हो ?" उन्होंने उसी प्रकार नकारात्मक जवाब दिया- "नहीं, महाराज !" सब हँस पड़े और आसोजी लज्जित हो गये । सचमुच नींद लेने वाला जीता नहीं । जीता वह है, जो जागता है । जागरण आत्मानुभूति का फल है । इन्द्रियां, मन और बुद्धि का द्वार बन्द कर भीतर जाने का फल है धर्म और जीवन । अपने अन्दर में जाने का प्रारम्भ अध्यात्म की वर्णमाला का प्रथम अक्षर है । इसके अभाव में अध्यात्म की पुस्तक का प्रथम पृष्ठ ही अधूरा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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