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________________ वैज्ञानिक चेतना से नशा मुक्ति १५७ पुराने जमाने में गुरु शिष्यों के कान खींचते थे। आज शरीर-शास्त्रियों की नई खोज शुरू हुई है। एक बार कादम्बिनी में एक लेख जिसका शीर्षक था— 'कान खिंचाइए, बुद्धि बढ़ाइए', यह अप्रमाद की बात है। इस पर ध्यान करने से नशे की आदत भी बदल जाती है । इस पूरी विधि को समझना होगा पर यह अनुभूत बात है कि कान पर ध्यान करने से नशे की आदत बदल जाती है । गंगाशहर चातुर्मास में बीकानेर विश्रोई धर्मशाला में एक शिविर हुआ, उसमें एक युवक भी भाग ले रहा था । वह काफी बीमार हो चुका था। घर वाले परेशान थे । वह शिविर में आया तो हमें पता चला कि वह सिगरेट बहुत पीता है । हमने उस पर सिगरेट छोड़ने हेतु कोई दबाव नहीं डाला । केवल कुछ प्रयोग करवाए । शिविर पूर्ण हो गया । पांच-दस दिन बाद मैंने पूछा- “बोलो, तुम्हारी क्या स्थिति है ? सिगरेट पीते हो?" वह युवक बोला- "क्या बताऊं? मुसीबत हो गई। पहले मैं प्रतिदिन पचास-साठ सिगरेट पीता था, अब अगर एक भी पीता हूं तो इलायची खानी पड़ती है। लगता है अब मैं इस सिगरेट पर काबू पा लूंगा ।" ध्यान से रासायनिक परिवर्तन ध्यान से ऐसा रासायनिक परिवर्तन हो जाता है कि आदमी नशे में जा ही नहीं सकता । दीर्घ श्वास भी नशे को बदलने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । इस पर हमारे यहां काम हुआ है। शुभकरण सुराणा अहमदाबाद जा रहे थे । रेल के जिस डिब्बे में वे बैठे थे, उसमें एक मुसलमान परिवार भी था । उनमें आपस में झगड़ा हो रहा था । एक युवक सिगरेट पी रहा था । उसकी मां-बहन उसे मना कर रही थी और कह रही थीं कि "तू सिगरेट पीता है और चेन स्माोकर है, यह अच्छा नहीं है। इससे तुम्हारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। युवक ने कहा- "मैं भी जानता हूं | मैं मूर्ख नहीं हूं, पढ़ा-लिखा हूं | पर सिगरेट नहीं छोडूंगा, नहीं छोड़ सकूँगा ।" शुभकरण वह सब देख-सुन रहे थे। उन्होंने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा"ठीक है कि तुम सिगरेट नहीं छोड़ सकते, पर मैं तुम्हें एक बढ़िया सिगरेट बताता हूं। वह नुकसान भी नहीं करती, तब इस सिगरेट को छोड़ सकते हो?" उसने कहा- "इससे बढ़िया सिगरेट हो तो फिर क्यों नहीं छोडूंगा?" उसे बताया गया- "तुम सिगरेट पीकर नाक से धुंआ निकालते हो । ऐसा करो कि बाएं नथूने से श्वास लो, दाएं नथूने से श्वास निकाल दो । इससे लेना और इससे छोड़ना बस यह क्रम चलता रहे। यह एक बढि या सिगरेट है; पीकर देखो।" पता नहीं युवक को क्या जंचा, उसने वह सिगरेट पीना शुरू किया । पांच-दस मिनट तक ऐसा किया, फिर बोला— “यह तो अच्छी बात है, आनन्द आ गया । अब मैं सिगरेट छोड़ सकता हूं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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