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________________ वैज्ञानिक चेतना से नशा मुक्ति विज्ञापन देश के हर कोने में किसी वस्तु को प्रसारित करने के लिए विज्ञापन अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं । इसी का फायदा उठाया है नशीली वस्तुओं को बेचने वाली कम्पनियों ने । इन कम्पनियों ने इस प्रकार से नशीली वस्तुओं को विज्ञापित किया कि व्यक्ति उसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता । नशीली वस्तुओं में कुछ महक, सुगंध करने से व्यक्ति उसकी खुशबू के पीछे खिंचा चल जाता है। खाने वाले को लगता है कि जैसे अमृत मिल गया है। नशीली चीजों को खाने के बाद थूकना भी नहीं चाहता । एक बार के प्रयोग से लगता है कि जैसे वह दूसरी ही दुनिया में चला गया हो। फिर उससे छुटकारा पाना भी मुश्किल हो जाता है। नशा किए बगैर रहा नहीं जाता । शराब भी बड़ी तेजी के साथ फैलती चली जा रही है। कई ऐसी जातियां, जो पहले शराब से मुक्त थीं, वे भी आज इस ओर बड़ी उग्रता से बढ़ती जा रही हैं। शराब पीकर कोई पागल तो नहीं बनना चाहता, मगर अपने तनावों को सहन भी नहीं कर सकता परिणाम होता है— व्यक्ति का शराबी बन जाता है । उन्माद में क्या नहीं होता ? एक शराबी पीकर सड़क के बीच में लेट गया । सामने से एक तांगे वाला आया । उसने कहा- "सड़क के बीच में कौन सोया है ? हटो !" एक-दो बार कहा तो भी वह न हटा । तांगे वाले ने गुस्से में आकर कहा- 'हटते हो या नहीं ? मैं तांगा ऊपर से निकाल दूंगा ।" शराबी बोला- “निकाल दे, मेरा क्या लेता है ?" तांगे वाले ने कहा" मेरा क्या लेता है ? तेरा पैर कट जाएगा ।" नशे में चूर शरीबी बोला- "कट जाएगा तो मेरा क्या लेता है ।" तांगे वाले ने कहा- “पागल, पैर तेरा नहीं है क्या ?" शराबी बोला- “मेरा कहां है ? मेरे पैर में जूता था, इस पैर में नहीं है, यह पैर मेरा नहीं है ।" यह है शराब का पागलपन । १५५ ऐसी ही एक दूसरा उदारहण है— एक शराबी नशे में डूबा हुआ घर आ रहा था कि लड़खड़ा कर एक खड्डे में गिर गया। काफी खरोंचें आई, हाथ-पैर एवं चेहरे पर । चेहरे से खून बह रहा था। घर पहुंचने पर पत्नी ने देखा तो वह बहुत शर्मिन्दा हुई पति से बोली - "आप स्नानघर में जाकर कांच में देखकर अपने मुंह पर महिम लगाओ ।" शराबी अन्दर आया और सो गया । पत्नी ने देखा - खून तो अभी भी चेहरे से बह रहा है ? वह बोली- "आपने मल्हम नहीं लगाई।" पति बोला- 'अभी-अभी तो स्नानघर में लगाकर आया था ।" जब उसकी पत्नी स्नानघर में गई तो देखा- कांच पर मल्हम लगाई हुई थी । यह भी एक शराबी के नशे का ही पागलपन है । इस तरह के न जाने कितने प्रसंग हैं, जिनमें आदमी अपनी सुध-बुध खोकर प्रमाद में चला जाता है, वह अपने अच्छे-भले स्वास्थ्य से भी हाथ धो बैठता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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