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________________ १५४ समस्या को देखना सीखें चूसना, सूंघना इयादि । ये सभी तरीके तम्बाखू के इस्तेमाल में प्रयोग किए जाते हैं । आज के युवा वर्ग का बढ़ता शौक जब आदत में परिवर्तित हो जाता है तब समाज के सामने विकट स्थिति पैदा हो जाती है । इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए सरकार ने एक कानून पास कर नशे के पैकेट चाहे जर्दे का हो या सिगरेट का, उन पर लिखना आवश्यक कर दिया कि 'सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' । फिर भी वर्तमान में लोग नशे की आदत को छोड़ने को राजी नहीं हैं । सिगरेट पीते हैं, बीड़ी पीते हैं एवं जर्दा भी खाते हैं । मैंने लोगों से पूछा- “तुम बीड़ी पीते हो, जो हिदायत लिखी रहती है; उसको पढ़ा कि नहीं?" उत्तर मिला- "हिदायत को पढ़ते हैं और पीते भी हैं।" इसका अर्थ है कि आज मानव अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं है । भयंकर बीमारियों को आमंत्रण दिया जा रहा है। यहां तक कि कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के प्रति भी लापरवाह हैं। कारण है तनाव जब हम नशे का कारण खोजते हैं तो पता लगता है कि आदमी में तनाव बहुत है । अगर तनाव नहीं हो तो आदमी नशा भी क्यों करेगा ? तनाव रहित व्यक्ति कभी जानबूझ कर पागल थोड़े ही बनता है, बल्कि सत्य तो यह है कि व्यक्ति अपना तनाव समाप्त करने के लिए नशे का आदी हो जाता है | आदमी में भय, चिन्ता या मानसिक तनाव होता है तो वह उससे छुटकारा पाने के लिए नशा भी करता है । हालांकि अब वर्तमान सामाजिक ढांचे में भौतिकता एवं पाश्चात्य संस्कृति की अन्धी दौड़ में स्त्रियों के शामिल होने के प्रयास से चिंताएं बढ़ी हैं और इसी कारण आ महिला वर्ग ने भी अपनेआप को नशे की पंक्ति में स्थापित कर दिया है | आज व्यक्ति की सामाजिक चिंताएं जैसे- घर खर्च, शादी-विवाह, दहेज का दावानल आदि सभी ने मिलकर तनाव का वातावरण बना दिया है । इस वातावरण से प्रताड़ित होकर व्यक्ति तनावों से क्षण भर मुक्ति पाने के लिए नशे की शरण प्राप्त करता है। संपर्क और संगति • व्यक्ति का भावनाशील होना भी उसके लिए बड़ा खतरा साबित होता है । जीवनसफर में विविध मोड़ों पर सम्पर्क में आने वाले उनके साथी हितैषी भी ऐसी आदत डाल देते हैं । आपसी सम्पर्क एवं संगति के कारण उनके आग्रहवश एक बार पीने वाला व्यक्ति हर बार पीने लगता है । यही हर बार पीना उसकी आदत में परिवर्तित होते ही वह उसका शिकार हो जाता है । फिर बिना नशा किए उसका जीवन दूभर हो जाता है; तो व्यक्ति को वह जहर बार-बार गले से उतारना ही पड़ता है। फिर तो वह अपने जीवन की शेष सांसें शराब के प्याले में, सिगरेट के धुंए में ही देखता है अर्थात् उसका जीवन नशे में बन्दी हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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