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________________ १४८ समस्या को देखना सीखें जब तक समाज के सामने विराग का दर्शन है तब तक समाज ठीक चलता है । यदि राग का एकछत्र साम्राज्य फैल जाए तो समाज की व्यवस्था एक दिन में चरमरा जाए। हिंसा अहिंसा के सहारे पूज्य गुरुदेव ने कलकत्ता चतुर्मास के दौरान काशीपुर की एक प्रवचन सभा में कहा था- “आ हिंसा अहिंसा के कंधों पर बैठकर चल रही है । झूठ सत्य के सहारे पल रहा है। यदि ऐसा अवसर प्रस्तुत हो जाए, चौबीस घंटे केवल हिंसा ही हिंसा चले तो कौन बच पाएगा ? अहिंसा है इसीलिए हिंसा चल रही है । सब मिलकर हिंसा की होली खेलें तो परिणाम क्या होगा? बाजार में दुकानों पर लिखा होता है- असली देशी घी की मिठाइयां मिलती हैं, शुद्ध माल, मिलता है । सारे पट्ट सचाई के मिलेंगे किन्तु उनकी ओट में झूठ पलता है। एक ज्वलंत समस्या है अपराध की । प्रश्न होता है— समाज में अपराध क्यों बढ़ते हैं ? जब राग उच्छृखल बनता है, अपराधों को पनपने का अवसर मिलता है। राग पर अंकुश बना रहे तो अपराध नियन्त्रित रहेंगे। पुलिस कभी अपराध की रोकथाम नहीं कर सकती । जब तक राग के सामने विराग का आदर्श नहीं होगा, अपराध की रोकथाम संभव नहीं हो पाएगी। जरूरी है विराग दर्शन अपराध का रोकने का सबसे बड़ा सूत्र है— राग के साथ-साथ विराग का दर्शन | यदि हम वीतराग को अपना आदर्श मानें और णमो अरहंताणं को याद करते चले जाएं तो राग पर एक अंकुश लग जाए । यह सच है कि कोई व्यक्ति एक दिन में अर्हत् नहीं बन सकता । यदि अर्हत् बनने का संकल्प मन में उतर जाए, यह आदर्श मन में रम जाए तो राग नियंत्रित बना रहेगा, उच्छृखल नहीं होगा । यह नहीं सोचा जा सकता— समाज का बहिरात्मभाव समाप्त हो जायेगा, सब अन्तरात्मा बन जायेंगे । यह इष्ट और वांछनीय है किन्तु ऐसा होता नहीं है । बहिरात्मा व्यापक संख्या में हैं । हम उनके सामने परमात्मा का दर्शन प्रस्तुत कर सकते हैं। उन्हें यह बताया जा सकता है- समाज को ठीक चलाने के लिए परमात्मा का होना आवश्यक है । अगर परमात्मा का भाव नहीं रहा तो समाज ठीक नहीं चलेगा । व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी एक क्षण ऐसा आता है, परमात्मादर्शन का आलोक उसके जीवन को उजाले से भर देता है, व्यक्ति बहिरात्मा से परमात्मा की दिशा में प्रस्थान कर देता है । राग का निदर्शन ____ इलाचीकुमार ने एक सम्पन्न घर में जन्म लिया । जब उसने यौवन में प्रवेश किया तब एक नटमण्डली उसके नगर में आई । नटों ने अपने खेल दिखाए, करतब दिखाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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