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________________ समस्या को देखना सीखें में सरसों का एक बीज यदि डाल दिया जाए तो वह होते हुए भी दिखाई नहीं पड़ता। इसीलिए हमारे ऋषियों, मुनियों तथा दार्शनिकों ने कहा-आपका देखना अधूरा है। एक सड़क हमारे सामने है । यदि हम उसे दूर से देखते हैं तो वह केवल पतली-सी काली रेखा के समान ही दिखाई पड़ती है । यह दर्शन है ही नहीं । यह सही है कि दर्शन का अर्थ होता है देखना परन्तु देखना वही है जहां आंखें मूंदकर देखा जाए । __दर्शन का अर्थ है साक्षात् । जो मन को एकाग्र कर देखने का प्रयास करते हैं, वही सही देखना है । जहां दूरी सूक्ष्मता देखने में बाधक नहीं बनती, वही देखना है । भगवान् महावीर ने कहा—जो मनुष्य क्रोध, मान, माया और लोभ पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह परमात्मा को प्राप्त कर लेता है | जब हम अपने आप में देखते हैं तब दर्शन पूर्ण हो जाता है | जहां चित्त को अपने आप में केन्द्रित किया जाता है, वही है दर्शन | शेष सब तर्क का मायाजाल | यह सरल तो बहुत है परन्तु इसे पाने में कठिनाई होती है, पर जिन्होंने थोड़ा प्रयत्न किया, उन्हें मिला भी अवश्य । निष्पत्ति दर्शन की । एक व्यक्ति सोते के पास खड़ा है। वह देखता है कि एक हिरणी पांव से लंगड़ाती हुई आती है और सोते में पांव कुछ देर तक रखने के बाद पुनः वापस चली जाती है। तीन दिनों तक यही क्रम चलता रहा और चौथे दिन हिरणी बिलकुल स्वस्थ हो गई । उस मनुष्य ने देखने का यत्न किया और उसी से प्राकृतिक चिकित्सा का जन्म हुआ । एक मनुष्य बीमार है । वह देखता है कि बच्चा 'ला-ला' का उच्चारण करत हुआ ज़ोरों से सांस ले रहा है। उसने देखने का प्रयत्न किया, उससे स्वर-चिकित्सा (ट्यूनोपैथी) का जन्म हुआ। जिस किसी ने भी देखने का प्रयत्न किया शायद कभी व्यर्थ नहीं गया । बड़ेबड़े कहानीकार, कलाकार आदि जिन्होंने भी इतनी ख्याति प्राप्त की, उन्होंने एकाग्रता से देखने का प्रयल किया था। महाकवि कालिदास ने 'अभिज्ञान शाकुन्तल' का ऐसा सृजन किया है, जिसे पढ़कर जर्मन के कवि गेटे नाच उठा । हमारे यहां रामायण में आता है कि हनुमान ने देखा, सूर्य अस्त हो रहा है, उनके मन में वैराग्य की भावना उमड़ पड़ी। आज जैसा देखना चाहिए, वैसा नहीं देखा जा रहा है । जिसे पीलिया की बीमारी हो जाती है, उसे सब कुछ पीला ही पीला नज़र आता है । आज इस बीमारी को मिटाने की आवश्यकता है । जीवन के प्रति दृष्टिकोण क्या हो, लोग इसे भूल गए । मेरे विचार से तो नब्बे प्रतिशत लोगों का जीवन के प्रति कोई दृष्टिकोण नहीं है । आप खाते हैं, पीते हैं, श्वास-निःश्वास लेते हैं केवल जीवित रहने के लिए; परन्तु किसलिए जीते हैं, यह नहीं बता सकते । हो सकता है कि मौत नहीं आ रही हो, इसीलिए जीवित रहते हों। निवृत्ति पलायनवाद नहीं हमारा जीवन इतना मूल्यवान है कि उसके द्वारा बहुत बड़े-बड़े काम किए जा सकते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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